Data Loading...

राष्ट्रीय ज्वाला Flipbook PDF

1 jan to march 2019


100 Views
86 Downloads
FLIP PDF 1.59MB

DOWNLOAD FLIP

REPORT DMCA

nपुलवामा: सबको

सन्मति दे भगवान!

nजगन्नाथ धाम के 13

आश्चर्यजनक तथ्य

nपवित्र गंगा की

अविरलता में बाधाएं

राष्ट्रीय ज्वाला सकारात्मक विचारों की त्रैमासिक पत्रिका

वर्ष; 46 अंक; 1 जनवरी से मार्च 2018 मूल्य; 25 रुपए

Mogambo बनकर

अमरीश पुरी

की जगह ‘खुश होता’ यह एक्टर पढ़िए अंदर

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

1

पत्र-पत्रिकाएं बोझ नहीं, मित्र है

पढ़ें और पढ़ाएं राष्ट्रीय ज्वाला

सकारात्मक विचारों की त्रैमासिक पत्रिका बंसल भवन, मोती बाजार,दुगड्डा-246127 जिला पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) मोबाइल : ९४१२९६५२६५,९४१२९५४१३१

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

2

राष्ट्रीय ज्वाला वर्ष-47, अंक-01

संस्थापक संपादक स्व. कैलाशचंद्र बंसल संपादक गोपाल बंसल उप संपादक राकेश कुमार अग्रवाल, नजीबाबाद डॉ.अनुराधा मित्तल, गाजियाबाद प्रबंध संपादक वीरेंद्र गोयल, कालागढ़ संपादकीय सलाहकार अशोक थपलियाल, जयपुर कानूनी सलाहकार एडवोकेट हरपाल सिंह, नजीबाबाद विशेष संवाददाता दिलीप अग्रवाल, दिल्ली संजय नौटियाल, देहरादून महेश शर्मा, हापुड़ गिरीश बलूनी, अहमदाबाद कवर डिजाइन शेखर हाड़ा, भोपाल संपादकीय पता बंसल भवन, मोती बाजार, दुगड्डा-२४६१२७ जिला पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) मोबाइल : ९४१२९६५२६५,९४१२९५४१३१ प्रकाशित रचनाओं में व्यक्त विचार लेखकों के अपने हैं। इनसे संपादक मंडल का सहमत होना अनिवार्य नहीं है।

इस अंक में

6

आवरण कथा : सबको सन्मति दे भगवान! आतंकवाद पर सारगर्भित लेख अभिमत : पाठकनामा.......................................................४ संपादकीय : गढ़वाली-कुमाऊंनी बोली को भाषा...................५ पुरी के जगन्नाथ धाम के 13 आश्चर्यजनक चर्चिच तथ्य........9 गुरु पुष्पदंत सागर ने सुनाई तरुण सागर के सन्यासी............१0 बोलकर पढऩे से बढ़ती है याददाश्त ..................................१2 अमरनाथ गुफा में शुकदेव और पवित्र कबूतर......................१3 कण्वाश्रम से छंटने लगे गुमनामी के बादल‌‌‌‌‌‌‌.........................१4 कार्टून पन्ना : शेखर हाड़ा के चुनिंदा कार्टून........................16 गोडावण पर मंडराता खतरा...............................................18 जयदेव सिंह : उनकी आवाज को हर कोई पहचानता था......19 गंगा की अविरलता में बाधाएं............................................20 नंधौर बनेगा उत्तराखंड का तीसरा टाइगर रिजर्व..................22 रेहड़ी फेरीवाले : असुविधा और अभाव के बीच....................23

30

मोगम्बो बनकर अमरीश पुरी की जगह खुश होता यह एक्टर

स्वत्वाधिकारी, मुद्रक व प्रकाशक गोपाल बंसल ने जयंत प्रकाशन, डिग्री कॉलेज रोड, कोटद्वार से मुद्रित कराकर राष्ट्रीय ज्वाला कार्यालय बंसल भवन, मोती बाजार, दुगड्डा-246127 जिला पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) से प्रकाशित किया। संपादक गोपाल बंसल

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

3

अभिमत

सबक : लोकतंत्र कभी विकल्पहीन नहीं होता उत्कृष्ट अंक

राष्ट्रीय ज्वाला का अक्टूबर से दिसंबर 2018 अंक पढ़ा तो अच्छा लगा। आवरण कथा- सबक : लोकतंत्र कभी विकल्पहीन नहीं होता सारगर्भित व समसामयिक लेख है। लेखक ने अपनी बात को बेबाक तरीके से रखकर पाठकोें की कई जिज्ञासाओं का भी स्वत: समाधान कर दिया है। लोकतंत्र मजबूत व सुदृढ़ होगा तो देश भी स्थिर व मजबूत रहेगा। भारतीय लोकतंत्र की ताकत उसकी अपनी जनता है। परंपराएं कॉलम में एक विवाह ऐसा भी एक अन्य जानकारीयुक्त लेख है। इसमें भगवान इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए किए जाने वाले तमाम प्रयत्नों का जो विवरण दिया गया है वह रहस्य-रोमांच सा अहसास कराता है। पत्रिका के अन्य स्थायी स्तंभ पठनीय है। पत्रिका प्रबंधन को बहुत-बहुत बधाईयां, वह अपनी परंपरा के अनुरूप पाठकोें को अच्छी व पठनीय सामग्री परोस रहा है। - कमल बिष्ट, कोटद्वार

केदारनाथ के बहाने... लेख अद्‌भुत

पत्रिका में केदारनाथ के बहाने... लेख बहुत ही अच्छा लगा है। ऐसा लगा कि मैं केदारनाथ अंचल में िवचरण कर रहा हूं। लेखक की लेखनी को मैं कोटि-कोटि साधुवाद देता हूं। अद्‌भुत लेख है। -दीया अग्रवाल, कोटपूतली

जगवाणी

उत्तराखंड से धोनी के बाद पंत का अवतार

उत्तराखंड से धोनी के बाद पंत का भारतीय क्रिकेट में आना सभी पहाड़वासियों का सीना चौड़ा कर देता है। यह होना स्वाभाविक भी है। पहाड़ी अपनी प्रतिभा से हर क्षेत्र में झंडे फहरा रहे है। -कमलेश उपाध्याय, अहमदाबाद

-जागेश्वर जोशी

अनमोल वचन दोस्त अपना प्यार मुश्किल के समय जताते और दिखाते हैं, ना कि खुशियां के समय। - यूरीपिडेस जो दवा आप अपने परिवार के किसी सदस्य को नहीं दे सकते, वह किसी रोगी को भी न दें। राष्ट्रीय ज्वाला द्वारा जनहित में प्रकाशित

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

4

संपादकीय

गढ़वाली-कुमाऊंनी बोली को भाषा की मान्यता मिले भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। मगर अब भी इसको पूरा यथोचित सम्मान अपने ही देश मेें नहीं मिल सका है। कामकाज में आज भी हम अंग्रेजी भाषा का सर्वाधिक प्रयोग करते है। यही नहीं आपसी संवाद में भी अंग्रेजी का इस्तेमाल अपने को श्रेष्ठ साबित करने की तुच्छ मानसिक बतौर करते है। कह सकते है कि अंग्रेज चले गए मगर भारतीय अंग्रेज आज भी देश में विद्यमान है। हालंाकि भारतवर्ष में हिंदी को पूरा सम्मान व प्रतिष्ठा दिलाने के लिए हम हिंदी दिवस पर तमाम प्रोग्राम करते है, हिंदी पखवाड़ा भी मनाते है, मगर इसके बाद फिर हम वही पुराने ढर्रे में आ जाते है। देश में हिंदी के अलावा आंचलिक बोली व भाषाओं को भी भारतीय संविधान में सम्मिलित करने की काफी समय से मांग उठती रही है। आजादी के करीब 72 साल के बाद भी हम ना तो हिंदी को उसका पूरा सम्मान दिला सके है और ना ही हम आंचलिक भाषाओं के साथ पूरा न्याय कर सके है। संविधान में अब तक देश की 22 भाषाएं मान्यता प्राप्त कर चुकी है परंतु कुमाऊंनी व गढ़वाली जैसी 35 भाषाएं भी मान्यता पाने की फेहरिस्त में है, देखते है इनको कब तक इंतजार करना पड़ेगा। कहते है कि आदमी अपने सुख-दुख को स्वाभाविकता से अपनी बोली-भाषा में ही अभिव्यक्त कर सकता है। स्वभाषी उसे भाई की तरह प्रिय लगता है। मनुष्य स्वभाषा से ही सही अभिव्यक्ति कर सकता है। दूर देश में जब स्वभाषी मिल जाता है तब उसका मन मयूर की तरह नाज उठता है। यह स्वाभाविक भी होता है। उत्तराखंड के समग्र विकास के लिए गढ़वाली का विकास नितांत आवश्यक है। जनता के हृदय तक जाने के लिए आम जनता की भाषा को अपनाया जाना आवश्यक है। इतिहास में झांके तो पता चलता है कि पंवार वंश के शासनकाल में गढ़वाली राजभाषा थी। राजाज्ञा इसमें प्रसारित होती थी। सरकारी कामकाज इसमें होता है। यह भाषा शिक्षण का सशक्त माध्यम थी व न्याय निर्णय की भाषा रही थी। संविधान मेें स्वभाषा लिपि व संस्कृति के संरक्षण प्रावधान के आज तक गढ़वाली व कुमाऊंनी भाषा को उसका यथोचित सम्मान नहीं मिल सका है। भाषा द्वारा संस्कृति एवं परंपराओं का ज्ञान होता है। भाषा विज्ञानी को भी इन दोनों बोली की भाषा बनाने की दिशा में प्रगति के लिए लिपि का विकास करना होगा। उत्तराखंड सरकार को इस दिशा में शीघ्र पहल करनी चाहिए ताकि पहाड़वासियों को अपनी पहचान मिल सके। -गोपाल बंसल

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

5

आवरण कथा सवाई सिंह शेखावत चुनाव के चलते देश की फ़िज़ां में तीखा ज़हर घुल गया है-जिसके चलते हम घोर उन्माद की स्थिति में हैं। केवल कथित राष्ट्रवादी ही नहीं, बल्कि वे लोग भी जो कल तक ‘युद्ध को ना कहें’ का शांति बैनर लगाए घूमते थे-समान रूप से विष-वमन के घिनोने अभियान में जुटे हैं। हम अपने आप में ही राष्ट्रद्रोही होते जा रहे हैं। इस देश को गारत करने के लिए अब किसी विदेशी ताकत की दरकार नहीं है- आपसी सिर फुटव्वल के चलते हम खुद देश को नष्ट करने पर आमादा हैं। एक ओर सत्ताधारी दल और उसके अंध समर्थक हैं जो पुलवामा त्रासदी के प्रतिकार को मोदी का सुपर चमत्कार सिद्ध करतेे हुए पाकिस्तान द्वारा इस मौके पर दर्शित सद्भाव और संजीदगी को खारिज़ करने पर तुले हैं। दूसरी ओर विपक्षी नेताओं के साथ कुछ अपरिपक्व ‘शांति-बौद्धिक’ भी हैं जो मोदी के तमाम किये-धरे को नकारते हुए आतंकवाद की शरणगाह बने पाकिस्तान को शांति का अग्रदूत मानने का हठ ठाने बैठे है? इस तरह एक अविवेकी उन्माद दोनों ओर ठाठें मार रहा है। आइये शांतिपूर्वक तथ्यों पर गौर करें। पुलवामा के हिंस्र-बर्बर सैनिक संहार के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने जिस अविचलदृढ़ता से आतंकियों को पनाह देने वाले पाकिस्तान को सभी मोर्चो पर घेरा है उसका कोई सानी नहीं है। पाकिस्तान आज दुनिया में पूरी तरह अकेला पड़ गया है।कल तक उसके अनन्य समर्थक नज़र आते चीन तक नेे आंखें फेर ली हैं। क्यों कि सारी कूटनीतिक चतुराई के बावजूद वह भी दुनिया के सामने बर्बर आतंकियों का अकेला हिमायती किसी हालत में नहीं दिखना चाहता। फिर युद्ध छिड़ते ही पाकिस्तान में चल रहा उसका मेगा प्रोजेक्ट हर हाल में खतरे में पड़ ही जाएगा।

सबको सन्मति

पुलवामा त्रासदी के बाद भारतीय सेना के शानदार प्रतिकार और अमेरिका के आधुनिककतम हवाई युद्ध तकनीक पर आधारित फाइटर-16 को पुराने मिग के प्रहार के ज़रिए धूल चटा देने वाले अप्रतिम विंग कमांडर अभिनंदन का किया-धरा दुनिया भर में चर्चा में है। लेकिन इन दिनों चुनाव के चलते देश में जिस तरह का माहौल बना हुआ है उसने इस खुशी को कमतर किया है।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

6

्मति दे भगवान!

लगता है जैसे देश इन दिनों राजनीति का नरक हो कर रह गया हो। अब हमारे लिए देश-दुनिया की तमाम चीज़ों को देखने का केवल राजनीतिक चश्मा बचा है-वह चश्मा भले समर्थन का हो या फिर विरोध का। आज से पहले इस देश में कभी ऐसे हालात नहीं थे। इसे लेकर सोशल मीडिया पर एक मित्र की पिछले दिनों मार्मिक टिप्पणी थी-’चुनाव जल्द से जल्द निपट जाए तो देश की जान छूटे!’

आज दुनिया के समस्त देश जिस तरह भारत के नैतिक समर्थन में लामबंद हुए हैं-विश्व इतिहास में वह दुर्लभतम उदाहरण है। जो लोग मोदी की विदेश यात्राओं को गरियाते हुए नहीं थकते थेक्या उन्हें अब इस पर नए सिरे से विचार नहीं करना चाहिए? आज दुनिया का कोई भी धड़ा हमारे विरुद्ध नहीं है।यहाँ तक कि पाकिस्तान समर्थक कट्टर इस्लामी देश भी खुलकर भारत का समर्थन कर रहे हैं। ऐसे में इस्लामिक देशों के दुनिया के सबसे बड़े संगठन के सम्मेलन में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का मुख्य अतिथि की तरह शिरकत करना किसी अजूबे से कम नहीं है। गौर हमें इस तथ्य पर भी करना चाहिए-कि भूखों रह कर भी परमाणु बम बनाने और हजार वर्षों तक भारत के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ने की शपथ खाने वाला पाकिस्तान अपनी गिरफ्त में आये विंग कमांडर अभिनंदन को अगले ही दिन छोड़ने को विवश है। अपनी तमाम अनिच्छा के बावजूद विकट दिखती सी पाकिस्तानी सेना इसमें कोई अड़ंगा लगाने में कामयाब नहीं हो पाती-सिवा अभिनंदन के वाघा बॉर्डर लौटने की मियाद को बेशर्म ढंग से बढ़ाने के। अपनी औकात पे आई पाकिस्तानी सेना ऐसा करके ख़ुद दुनिया के सामने नंगी हुई है? उल्लेखनीय यह भी है कि कट्टर भारत विरोधी पाकिस्तानी सेना को पहली बार झुकना पड़ा है। सेना के बजाए वहाँ जनमत और राजनेताओं का वजन बढ़ता दिखा है। पाकिस्तानी संसद में विरोधी दल के नेता तक इस बात पर सोचने को विवश हुए हैं कि हमें आतंकियों के लिए देश को युद्ध में नहीं झोंकना चाहिए। इतिहास में पहली बार पाकिस्तानी संसद के संयुक्त अधिवेशन में इसे लेकर सामूहिक निर्णय होता है। पाकिस्तान के हजारों मानवाधिकार कार्यकर्ता खुलकर विंग कमांडर अभिनन्दन की रिहाई का समर्थन करते हुए जुलूस निकालते हैं। यहाँ तक कि ‘पाकिस्तान की एलओसी लांघने वाले विंग कमांडर अभिनंदन को भारत को नहीं लौटाया

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

7

जाए’ वाली कट्टरवादी अपील को भी पाकिस्तानी उच्च न्यायालय तुरत-फुरत खारिज़ कर देता है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी व्यर्थ की राष्ट्रीय भावुकता से बचते हुए स्पोर्ट्समैनशिप का प्रदर्शन करते हैं और अगले ही दिन बिना किसी शर्त के विंग कमांडर अभिनंदन को भारत को लौटा दिया जाता है। यह सच है कि अभिनंदन की इस सुरक्षित वापसी के पीछे विश्व जनमत का जबरदस्त दबाव, उसके आका बने अमेरिका की ख़िलाफ़त, पाकिस्तान की नैतिक और आर्थिक खस्ताहाली,भारतीय सेना की वर्तमान जुझारू क्षमता सहित अनेक कारण मौजूद रहे हैं। लेकिन सारे दबाव के बावजूद इमरान के इस बाबत निर्णय का महत्व कम नहीं हो जाता। (यह बात अलग है कि अपने राजनीतिक विरोध को संतुलित करने के लिए ठीक अभिनंदन की रिहाई के समय ही उनके दल के लोगों को उस फैसले के विरोध का ड्रामा भी करना पडता है) हम कल्पना करें कि स्थिति उल्टी होती तो इसे लेकर हमारा रवैया क्या होता? क्या हम नरेंद्र मोदी के ऐसे किसी फैसले के लिए उन्हें माफ़ कर सकते थे? आखिर पाकिस्तान में आज जो चल रहा है उसके लिए अकेला इमरान खान तो उत्तरदायी नहीं है। उसके पीछे लम्बा इतिहास है। लेकिन इस किये धरे की तोहमत और यश तो दर्ज़ उसीके खाते में होंगे। इस परिवर्तित पाकिस्तानी परिदृश्य की अनदेखी करते हुए क्या अब भी हमें पाकिस्तान को केवल सनातन शत्रु रूप में ही बरतना चाहिए? क्या ऐसे वक्त में आगे बढ़ कर हमें पाकिस्तान की गलीज़ सेना का मनोबल तोड़ने के लिए ऐसी शक्तियों का समर्थन नहीं करना चाहिए? क्योंकि भारत हो या पाकिस्तान दोनों का असली शत्रु तो वहाँ की सेना है। जो अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए बराबर आतंकवादी संगठनों को न केवल शह देती रही है, बल्कि पाकिस्तान में उभरने

वाले किसी भी प्रजातांत्रिक आंदोलन को कुचलते हुए अपनी तानाशाही लागू करती रही है। फिर सबसे बढ़ कर यह सवाल भी जैसा अटल जी ने कहा थाहम दुनिया में अपना पड़ौसी नहीं बदल सकते, अलबत्ता उससे बेहतर संबन्ध बनाने की कोशिश कर सकते हैं, जो हर हाल में की जानी चाहिए। कैसे-कैसे सवाल उठाये जा रहे हैं इन दिनों! एक मित्र कह रहे हैं ट्रम्प ने कहा - भारत कुछ खास करेगा और भारत ने पाकिस्तान पर बम डाल दिए। ट्रम्प ने कहा- खुश खबरी आने वाली है और थोड़ी देर बाद पाकिस्तान ने मिग कमांडर अभिनन्दन की रिहाई का ऐलान कर दिया...। तो क्या बंधु विश्व शक्तियों को विश्वास में लिए बिना ही आप ऐसा करिश्मा अंजाम दे सकते थे? एक प्रबुद्ध वरिष्ठ का कहना था कि करना तो इंदिरा गाँधी का था (अब कल ये ही सज्जन युद्ध से दूरी का बैनर लगाए घूम रहे थे-मित्र पहले तय करो किस ओर हो तुम? जो लोग सबूत के तौर पर आतंकियों के शव गिनने के ख्वाहिशमंद हैं- उन्हें क्या वायु सेना के प्रवक्ता की बात पर भी भरोसा नहीं है? इन्होंने साफ कहा था कि हमारा काम आतंकवादी ठिकानों पर बम बरसाना था-शव गिनना नहीं। हमें अपनी सेना पर तो कम-से-कम भरोसा करना ही चाहिए। ऐसे में राजनेताओं और देशवासियों से यही अपील है यह समय देश के लिए बहुत नाजुक है। अपनी दलगत आस्था और वफादारी के चलते समर्थन अथवा विरोध स्वरूप हम कुछ ऐसा नहीं करें जो देश के विरुद्ध जाए या सेना का मनोबल तोड़े! यह भी खुला तथ्य है कि सत्ताधारी दल जब तक सेना के किये-धरे के यश को अपने प्रचार का हिस्सा बनाता रहेगा, तब तक इसे लेकर विपक्ष से किसी संयम की उम्मीद करना बेमानी है। फ़िलहाल गाँधी बाबा की प्रार्थना ही गाई-गुनगुनाई सकती है: सबको सन्मति दे भगवान!

भक्तों की आस्था केंद्र पुरी का जगन्नाथ मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध है। यह हिन्दुस्तान ही नहीं, बल्कि विदेशी श्रद्धालुओं के भी आकर्षण का केंद्र है। मं‍दिर का आर्किटेक्ट इतना भव्य है कि दूर-दूर के वास्तु विशेषज्ञ इस पर रिसर्च करने आते हैं। यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं 13 आश्चर्यजनक चर्चित तथ्यजानिए जगन्नाथ पुरी मंदिर की 13 आश्चर्यजनक बातें 1. पुरी केे जगन्नाथ मंदिर की ऊंचाई 214 फुट है। 2. पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा। 3. मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। 4. सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है। 5. मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है। 6. मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती, लाखों लोगों तक को खिला सकते हैं। 7. मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

8

पुरी के जगन्नाथ धाम के 13 आश्चर्यजनक चर्चित तथ्य

लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है। 8. मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं।

इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है। 9. मंदिर का रसोईघर दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर है। 10. मंदिर का क्षेत्रफल 4 लाख वर्गफुट में है। 11. प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है। 12. पक्षी या विमानों को मंदिर के

ऊपर उड़ते हुए नहीं पाएंगे। 13. विशाल रसोईघर में भगवान जगन्नाथ को चढ़ाए जाने वाले महाप्रसाद का निर्माण करने हेतु 500 रसोइए एवं उनके 300 सहायकसहयोगी एकसाथ काम करते हैं। सारा खाना मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है। हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजीनियर रहे होंगे, यह इस एक मंदिर के उदाहरण से समझा जा सकता है।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

9

स्मृति

गुरु पुष्पदंत सागर महाराज ने तरुण सागर महाराज के सन्यासी बनने की सुनाई कथा

तरुण ने गिल्ली-डंडा खेलते हुए प्रवचन सुना और संत बनने की राह पकड़ ली, ३ दिन पहले कहा, आपका बेटा समाधि लेना चाहता है... 80 के दशक की बात है। मप्र में दमोह जिले के गुहंची गांव में मेरा प्रवचन चल रहा था। वहीं पास में तरुण सागर गिल्लीडंडा खेल रहे थे। मैंने प्रवचन के दौरान कहा कि कोई भी परमात्मा बन सकता है। यह बात सुनकर वो मेरे पास आए और पूछा कि मैं भी परमात्मा बन सकता हूं? मैंने कहा, किसने रोका है तुम्हें? तब उन्होंने पूछा- कैसे? मैंने कहा, हमारे साथ चलो। उसी समय वे हमारे साथ हो गए। जब यह बात उनके माता-पिता को पता चली तो वे खुश हुए, जबकि 12-13 साल के बच्चे को ब्रह्मचारी बनाने को लेकर बहुत से लोगों ने विरोध भी किया। पर न वे डिगे और न मैं। उसी का नतीजा है कि तरुण सागर बन सके। तरुण सागर मेरे साथ रहने लगे थे। उनकी उम्र ज्यादा नहीं थी। पर मैं उनकी परीक्षा लेता रहता था। एक बार रात 2 बजे तरुण सागर को प्यास लगी। वे पानी पीने जाने लगे। मैंने उन्हें रोका और कहा कि -बेटा रात में पानी नहीं पीते हैं। वे जाकर सो गए। सुबह 5 बजे वो मटके के पास पहुंचे ही थे कि मैंने फिर टोका। कहा- एक घंटे बाद सुबह हो जाएगी। नहा-धोकर पानी ली लेना। वे मान गए। यह उनके मनोबल की परीक्षा थी, जिसमेें वे खरे उतरे थे। तरुण सागर बहुत ज्यादा जिज्ञासु थे। उन्हें कुछ नया जानने की उत्सुकता रहती थी। यही कारण था कि उन्होंने हिंदी, मराठी

से दूर ही रहें।

दूसरी बात स्त्री और श्री (धन) से तीसरी बात योग्यता और समझदारी

बचकर रहना।

और अंग्रेजी अच्छी तरह से सीख ली थी। मैं उन्हें रोज दो घंटे का पाठ याद करने या पढ़ने के लिए देता था। वे इसे आधे घंटे में ही पूरा कर लेते थे। उनकी सूक्ष्म से सूक्ष्म ज्ञान की प्यास बढ़ती गई। मुझे याद है कि तरुण सागर को मैंने राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के बागीदौरा में दीक्षा दी थी। वे मेरे पहले शिष्य थे। जब उन्हें मेरे साथ रहते हुए चार से पांच साल हो गए थे। मुझे अहसास हुआ कि अब उन्हें अपनी प्रभावना के लिए विदा कर देना चाहिए। ताकि वे अपने ज्ञान से समाज में अलख जगाएं। मैंने छदवाड़ा में उन्हें विदा किया और फिर वे कभी नहीं रुके। मैंने उन्हें तीन बातें सिखाई थी। पहली बात समाज के बीच में जाने पर कोई समाज की निंदा करे तो उससे सावधान हो जाओ। वह समाज और सभी को नुकसान पहुंचाने वाला है। ऐसे व्यक्ति

को कभी भूले नहीं। तरुण सागर से मेरी तीन दिन पहले आखिरी बार बात हुई थी। उन्होंने कहाआपसे कुछ मांगना चाहता हूं। मैंने कहाआज तक तुमने कुछ मांगा नहीं, अब क्या मांगना चाहते हो। उन्होंने कहा- अब बहुत थक चुका हूं ज्यादा दिन अब नहीं रहूंगा। आपसे समाधिमरण की आज्ञा चाहता हूं। मैंने उनकी बात टाल दी और कहा किसोचकर बताऊंगा। 2-3 घंटे बाद फिर से फोन आया। बोले- आपका बेटा हूं। प्राणों का विसर्जन करना चाहता हूं। मैंने कहाबहकी-बहकी बातें क्यों कर रहे हो? अभी तुम्हें बहुत काम करना है। कहीं पीड़ा से परेशान होकर तो यह बात नहीं कह रहे हो? वे बोले- नहीं, मेरा समय आ गया है। मैंने फिर उनकी बात टाल दी। कल शाम साढ़े 4 बजे फिर फोन आया। बोले कि - वे गुरु के दर्शन करना चाहते हैं। मैंने कहा- संभव नहीं। उन्होंंने कहावीडियो कॉल से हो जाएगा। उन्हें देखकर मैं हैरान रह गया। वे लेटे हुए थे। बहुत कमजोर लग रहे थे। मैंने उन्हें आशीर्वाद दिया और फोन कटवा दिया। उनकी हालत मैं देख नहीं पा रहा था। तरुण सागर की जगह कोई नहीं ले सकता..

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

10

कड़वे प्रवचनों ने दी क्रांतिकारी मुनिश्री की पहचान जैन मुनि तरुण सागर दूर दृष्टा, प्रतिभाशाली एवं कला के पारखी थे। क्रांतिकारी संत कहे जाने वाले तरुण सागर की वाणी में स्पष्टता थी। उन्होंने अपनी वाणी से जन-जन के हृदय में अमिट छाप छोड़ी है। 14 साल की उम्र में ही उन्होंने घर छोड़ दिया था। 8 मार्च 1981 को सन्यास जीवन अपना लिया था। शिक्षादीक्षा छत्तीसगढ़ में हुई। प्रवचनों की वजह से ही उन्हें क्रांतिकारी संत का तमगा मिला। 6 फरवरी 2002 को उन्हें मप्र शासन ने राजकीय अतिथि का दर्जा दिया। 2 मार्च 2003 को गुजराज सरकार ने भी उन्हें राजकीय अतिथि के सम्मान से नवाजा। ३० फुट ऊंची पुस्तक का विमोचन तरुण सागर की कड़वे प्रवचन पर आधारित दुनिया की सबसे बड़ी पुस्तक की ऊंचाई 30 फुट और चौड़ाई 20 फुट थी। इसका विमोचन दुनिया की सबसे छोटी महिला (20 इंच लंबाई) ज्योति

पवन कुमार जैन

जन्म-२६ जून १९६७ (मप्र के दमोह जिले में) माता पिता का नामश्रीमती शांति बाई और प्रतापचंद्र

आमगे ने जयपुर की भट्टारकजी की नसियां में 2013 मेें कर विश्व कीर्तिमान बनाया था। कृतियां रही बहुचर्चित तरुण सागर की कई कृतियां और पुस्तकें बहुचर्चित रही। इनसे सबसे प्रमुख मृत्यु बोध थी। उन्हें आचार्या पुष्पदंत सागर ने प्रज्ञा श्रमण की मानद उपाधि भी प्रदान की थी। वे देश के पहले मुनि रहे जिन्होंने लाल किले से संबोधन दिया। टीवी चैनल के माध्यम से भारत सहित 122 देशों में महावीर वाणी के विश्व व्यापी प्रसारण की ऐतिहासिक शुरुआत का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। तनाव मुक्ति का अभिनव प्रयोग उन्होंने किया। आनंद यात्रा कार्यक्रम के प्रणेता थे। मुनि तरुण सागर की कड़वे प्रवचन की दसवीं और अंतिम कृति का जनकपुरी स्थित दिगंबर जैन मंदिर जयपुर में आर्यिका गौरवमति ससंघ के सान्निध्य में हुआ। मुनि तरुण सागर के देवलोकगमन से पहले ही इस पुस्तक का विमोचन का कार्यक्रम दिल्ली में तय था।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

11

मेरे प्रयास से गांव में कोई सार्वजनिक स्थान पर शराब नहीं पीता देश की इस सबसे युवा सरपंच ने पितृसत्ता पर कब्जा करते हुए विकास को सुनिश्चित किया है। अपशिष्ट प्रबंधन (वेस्ट मैनेजमेंट) के क्षेत्र में उनके व्यापक प्रयास, गांवों में सडक़ों की मरम्मत और स्टीट लाइटों से सड़कों पर रोशनी करने से उनकी प्रशंसा हुई है। 22 साल की उम्र में जबना चौहान सरपंच बनी। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले मेें स्थित थजुन गांव में रहने वाले एक किसान की इस बेटी जबना ने गरीबी व गांव के मामलों को चलाने के लिए पुरुष सत्तात्मक व्यवस्था की गहरी जड़ों पर विजय प्राप्त की है। स्कूल में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद उन्हें 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई करने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनके पिता जो कि उनकी छोटी बहन और दृष्टिहीन भाई को पाल रहे थे जबना को गांव के बाहर किसी डिग्री कॉलेज में भेजने में सक्षम नहीं थे। सौभाग्य से उनके चाचा आगे आएं और उन्होंने मंडी में जबना की कॉलेज की पढ़ाई का भार उठाने की पेशकश की। वहीं खुद की मदद करने के लिए जबना एक अखबार में बतौर पत्रकार काम कर

पूरे जिले से खबरें इकट्ठी करने लगी। एक पत्रकार के रूप में काम करने के दौरान उन्होंने न सिर्फ अपने गांव के लोगों की समस्याओं पर ध्यान देने का प्रयास किया बल्कि उन्हें अधिकारियों तक पहुंचा कर उसका हल भी तलाशा। 2016 में पंचायत चुनाव के समय पूरे गांव ने जबना से नामांकन दाखिल करने को कहा। उस समय वे 22 साल की थी और चुनाव नहीं लड़ना चाहती थी। हालांकि उन्हें जल्दी ही यह अहसास हुआ कि सरपंच बनकर वे अपने गांव के लिए बहुत कुछ कर सकती है। इस तरह वे भारत की सबसे कम उम्र की सरपंच बन गई। सरपंच के रूप में उन्होंने गांव की महिलाओं की मदद की और शराब के संकट पर काबू पाया। इसके बाद अपने पड़ोसी गांवों में शराब विक्रेताओं के धंधे को बंद करवाने के लिए वहां तैनात सरकारी अधिकारियों तक भी वे पहुंच गई। यही नहीं शराब और तंबाकू उत्पादों की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक प्रस्ताव पारित करवाने के लिए वे ग्राम सभा पहुंची। जबना के अनुसार यह सब काम

चुनौतीपूर्ण था लेकिन मैं अपने गांव में उपद्रव को रोकने के लिए दृढ़ संकल्प ले चुकी थी। मैं जानती थी कि शराब की लत वाले पुरुष मुझे गाली देंगे और मेरे साथ अच्छा व्यवहार नहीं करेंगे। लेकिन मैंने उनसे कहा कि मैं रुकने वाली नहीं हूं। और फिर जबना गर्व से कहती है कि आज हमारे गांव में कोई सार्वजनिक स्थानों पर शराब नहीं पीता। गांव में हो डिग्री कॉलेज पिछले साल शराब और तंबाकू उत्पादों की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध लगाने के लिए उन्हें संकल्प पारित करने के लिए ग्राम सभा भी मिली। उन्हें अपने इस प्रयासों के लिए सर्वश्रेष्ठ सरपंच का जिला स्तरीय पुरस्कार भी जीता। आज उन पर न केवल परिवार को बल्कि पूरे गांव को गर्व है। जबना अब शिक्षा क्षेत्र में काम करना चाहती है। वह जल्दी ही अपने गांव में एक डिग्री कॉलेज बनाने की आशा करती है। साथ ही वे महिलाओं के लिए एनजीओ शुरू करना चाहती है जो गांव के लोगों को अतिरिक्त आय अर्जित करने का मौका दें।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

12

कण्वाश्रम से छंटने लगे गुमनामी के बादल स्वच्छ भारत मिशन के तीसरे चरण में देश के १० दर्शनीय स्थलों की सूची में शामिल हुआ कण्वाश्रम

अजय खंतवाल गुमनामी के अंधेरों में दफन महर्षि कण्व की तपोस्थली एवं चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मस्थली कण्वाश्रम के शायद अब दिन बहुरने लगे हैं। बीते वर्ष भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) कण्वाश्रम का साइट प्लान तैयार कर इस स्थल का इतिहास खंगालने की तैयारी कर चुका है। वही अब केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ने कण्वाश्रम को स्वच्छ भारत मिशन के तीसरे चरण में देश के १० दर्शनीय स्थानों की सूची में शामिल कर लिया है।

ऐसे हुई थी कण्वाश्रम की खोज

1955 में प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की रूस यात्रा के दौरानी रूसी कलाकारों ने महाकवि कालिदास रचित अभिज्ञान शाकुंतलम पर आधारित नृत्य नाटिका प्रस्तुत की। इसी दौरान एक रूसी दर्शक ने पंडित नेहरू से कण्वाश्रम के बारे में जानना चाहा लेकिन उन्हें इस संबंध में जानकारी नहीं थी। सो, वापस लौटते ही पंडित नेहरू ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ.संपूर्णानंद को अभिज्ञान शाकुंलतम में

वर्णित कण्वाश्रम की खोज का दायित्व सौंप दिया। प्राचीन ग्रंथों पुराणों, इतिहास, पुरातात्विक प्रमाणों व शोध से प्रमाणिक हुआ कि पौड़ी गढ़वाल जिले के कोटद्वार से 12 किमी दूर मालिनी नदी के तट पर कण्वाश्रम रहा होगा। 1956 में पंडित नेहरू व डॉ.संपूर्णानंद के निर्देश पर तत्कालीन वन मंत्री जगमोहन सिंह नेगी कोटद्वार पहुंचे और कण्वाश्रम (चौकीघाट) के निकट एक स्मारक का शिलान्यास किया।

इस तरह बदहेगी तस्वीर

दस दर्शनीय स्थलों की सूची में शामिल होने के बाद केंद्र सरकार कण्वाश्रम मेें अंतरराष्ट्रीय स्तर की सफाई व्यवस्था बनाने के साथ ही ढांचागत सुविधाओं का भी विकास करेगी। इसके तहत जहां सीवरेज का बुनियादी ढांचा विकसित किया जाएगा वहीं जल निकासी की सुविधाएं जुटाने के साथ सीवरेज शोधन ससंत्र (एसटीपी ) की स्थापना भी की जाएगी।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

13

कण्वाश्रम पर दूरदर्शन ने डाक्यूमेंट्री बनाई

हमारे देश को नाम देने वाले हस्तिनापुर-मेरठ के चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मस्थली एवं महर्षि कण्व की तपस्थली कण्वाश्रम पर दूरदर्शन एक डाक्यूमेंटी (वृत्तचित्र) बनाने जा रहा है। दूरदर्शन की तीन सदस्यीय टीम ने 21 जुलाई को कण्वाश्रम में डेरा डाल दिया है। टीम ने कण्वाश्रम के कई दृश्य फिल्माए और स्थानीय लोगों व

इतिहासकारों से जानकारी जुटाई। केंद्र सरकार ने जून में कण्वाश्रम को भारत स्वच्छ अभियान के तहत स्वच्छ आइकौनिक स्थल घोषित कर देश के चुनिंदा 30 दर्शनीय स्थलों की राष्ट्रीय सूची में शामिल किया है। देश की आजादी के 70 सालों में यह पहला अवसर है जब कण्वाश्रम को राष्ट्रीय स्तर पर इतनी ख्याति मिली है। कण्वाश्रम की महत्ता, इतिहास और

पौराणिकता को देखते हुए अब दूरदर्शन ने भी कण्वाश्रम पर करीब आधा घंटे की डाक्यूमेंटी बनाने का निर्णय किया। दूरदर्शन के कार्यक्रम अधिकारी अरुण राज्यगुरू के नेतृत्व में पहुंची टीम ने कण्वाश्रम के साथ लैंसडौन और ताडक़ेश्वर महादेव पर भी डाक्यूमेंटी बनाएगी। टीम ने दूरदर्शन के कैमरामैन लंकाज शर्मा व टेक्रीशियन राकेश जुयाल शामिल है।

मालिनी मृग विहार संचालन की सरकारी अनुमति न होने के कारण बढ़ रही परेशानी

ऐतिहासिक स्थली कण्वाश्रम की गोद मेें बसे मालिनी मृग विहार भी कंडी रोड बन गया है। अब जिस तरह कंडी रोड का मसला सुलझने के बजाय लगातार उलझता जा रहा है, उसी तरह मालिनी मृग विहार भी न तो मिनी जू बन पा रहा है और न ही रेस्क्यू सेंटर। सरकारी अनुमति के बगैर पिछले कई दशकों से संचालित हो रहे इस मृग विहार की दशा वर्तमान में काफी दयनीय हो गई है। मृग विहार में जहां मृगों क लिए पौष्टिक आहार की व्यवस्था नहीं है, वही इस मृग विहार के चारों ओर लगी कंटीली बाड के तार भी टूट गए है। इससे हिंसक जानवर आसानी से मृग विहार में घुस रहे है। सरकारी अभिलेखों में मृग विहार का उल्लेख न होने से वन महकमा मृर्गों की सुरक्षा के लिए पुख्ता प्रबंध भी नहीं कर पा रहा है। ऐतिहासिक कण्वाश्रम में 15 हेक्टेअर भूमि पर फैले मृग विहार का 1954 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन

मुख्यमंत्री डॉ.संपूर्णानंद ने उद्घाटन किया। 1958 में इसे कोटद्वार अंचल के वन्यजीव प्रतिपालक को सौंप दिया गया। बाद में मृग विहार कालागढ़ टाइगर रिजर्व के संरक्षण में पहुंच गया। कालागढ़ टाइगर रिजर्व प्रशासन ने मृगविहार पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद 2011 में यह मृग विहार लैंसडौन वन प्रभाग के पास आ गया और कोटद्वार रेंज के अधीन संचालित है। मृग विहार तो खोला गया, लेकिन इसे विभागीय अभिलेखों में कही दर्ज नहीं किया। नतीजा, आज तक इस मृग विहार में मृगों के भोजन व सुरक्षा के लिए सरकारी खजाने से कोई धनराशि अवमुक्त नहीं की गई है। मृग विहार में मौजूद मृग सिर्फ पेड़ों की पत्तियां खाकर जीवन काट रहे हैं। बताना जरूरी है कि जू ऑथरिटी ऑफ इंडिया कई बार इस मृग विहार को अनाधिकृत घोषित कर इन मृगों को अन्यत्र शिफ्ट करने के वन विभाग को निर्देश दे चुका है।

मृग विहार की स्थिति

मृगों की संख्या वर्ष

२०१३ २०१४ २०१५ २०१६ २०१७ २०१८

चीतल सांभर

३२ ३६ ४१ ४१ ४१ २७

६ ७ ९ ७ ९ ६

सरकारी फाइलों में उल्लेखित न होने से मृग विहार के नाम पर शासन से कोई धनराशि अवमुक्त नहीं होती। लैंसडौन वन प्रभाग गाहे-बगाहे किसी मद से मृगों के लिए पौष्टिक भोजन का प्रबंध कर लेता है। वर्तमान में मृग विहार के चारों ओर सुरक्षा के नाम पर लगाई गई इलेक्ट्रिक फेसिंग क्षतिग्रस्त है। मृग विहार में शायद ही कोई ऐसा दिन हो, जब बाघ न घुसता हो। मृग विहार की देखरेख करने वाले कर्मी बताते है कि शाम होते ही मृग विहार के आसपास बाघ की दहाड़ आसानी से सुनाई देने लगती है। वे पटाखे फोडक़र बाघों को पिंजरे से दूर रखने की कोशिश करते है, जो कठिन व जोखिम भरा काम है।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

14

कार्टून पन्ना

नीलशेखर हाड़ा

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

15

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

16

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

17

जलवायु परिवर्तन, तेल-गैस की खोज, उत्खनन कार्य, कृषि क्षेत्र में आ रहे बदलाव एवं नहरी क्षेत्र के कारण जहां थार रेगिस्तान का स्वरूप धीरे-धीरे बदलने लगा है, वही काफी सरकारी प्रयासों के बावजूद रेगिस्तानी क्षेत्र का मनोहारी एवं राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावण यहां बदली आबोहवा में अपने कुनबे को बढ़ा नहीं पा रहा।

गोडावण पर मंडराता खतरा भुवनेश जैन

वन विभाग ने मरू राष्ट्रीय उद्यान में गोडावण सहित अन्य वन्य जीवों की 30 अप्रैल 2018 को गणना की, तब यहां 42 गोडावण मिले। वन्यजीवों की गणना प्रतिवर्ष मई एवं दिसंबर में होती है। वर्ष 1981 में की गई शीतकालीन गणना के अनुसार यहां 54 गोडावण थे। मरू उद्यान की 17025 हेक्टेअर जमीन पर क्लोजर्स बनाए गए है जिनका मकसद बहु जैव विविधता संरक्षण एवं गोडावण को प्रजनन के लिए रिक्त स्थान उपलब्ध कराना रहा है। मरू राष्ट्रीय उद्यान वन्य जीव संरक्षण क्षेत्र में करीब 50 हजार की आबादी व चार लाख के करीब पशुधन है। सदियों से इंसान, मवेशी व वन्यजीव जंतु साथ-साथ पलते रहे है। लेकिन अब अन्य जीव जंतुओं की तरह गोडावण पर भी संकट खड़ा होता दिख रहा है। क्षेत्र में अनियोजित तरीके से बढ़ रही पवन चक्कियों और हाई वोल्टेज ट्रांसमिशन प्रणाली के कारण गोडावण ने परंपरागत रूट छोड़ दिया है। इस रूट पर कई बार

गोडावण हाई वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन के शिकार हो जाते है। गोडावण सहित दूसरे जीव जंतु क्षेत्र के परिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करते हैं। थार के प्रतीक गोडावण को संकट से उबारने के लिए मरू राष्ट्रीय

उद्यान क्षेत्र में निवासियों, वन्य जीव व प्रकृति के बीच संतुलन रखने के प्रयासों की जरूरत है। लेकिन यदि पेड़-पौधे, घास आदि को संरक्षित एवं संवद्धित करने के प्रयास नहीं किए गए तो वन्य जीव जंतु एवं स्थानीय मवेशी इस इलाके में कैसे बच सकेंगे। मरू उद्यान क्षेत्र में स्थित ओरणगोचर के साथ-साथ गैर कृषि जमीन पर रेगिस्तानी क्षेत्र की वनस्पतियों को पुनर्जीवित करने व उद्यान क्षेत्र के बाहर की परिधि में भी 100-150 किलोमीटर रेंज में ओरण-गोचन को संरक्षित करने की जरूरत है।मरू उद्यान क्षेत्र के बाहर पोकरण आदि इलाकों में 150 गोडावण होने की संभावना है। सरकार सभी का साथ लेकिन संरक्षण एवं संवद्र्धन करेगी तो थार का स्वरूप भी बचेगा और गोडावण सहित अन्य वन्यजीव जंतु अपना कुनबा बढ़ा पाएंगे। इको टूरिज्म भी तभी सफल होगा, जब टिकाऊ रोजगार देने में थार का यह क्षेत्र सक्षम हो पाएगा।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

18

जसदेव सिंह

अशोक राही कौन कह सकता था कि मरुभूमि के एक कस्बे बौंली जिला सवाई माधोपुर मेें जन्मे और चाकसू िजला जयपुर में प्रारंभिक शिक्षा पाने वाले जसदेव सिंह एक दिन अपनी आवाज के दम पर समूची दुनिया में पहचाने जाएगे? जसदेव सिंह ने कड़े परिश्रम से अपनी वाणी को साधा। मधुर आवाज, साफ सुथरी शैली, सही उच्चारण, तेज निगाह और धारा प्रवाह गति के संग जसदेव सिंह जब बोलते थे तो उनकी कमेंट्री सुनने वालों की सांसंे मानो थम जाती थी। पंजाबी भाषी इस युवक जिसकी मातृभाषा गुरुमुखी थी और बाद में हिंदी का सर्वश्रेष्ठ उद्‌घोषक बना। िहंदी, अंग्रेजी, उर्दू और पंजाबी चारों भाषाओं पर वे समान अधिकार रखते थे। हिंदी के सुविख्यात साहित्यकार डॉ.सरनाम सिंह अरुण ने उन्हें जयपुर के महाराजा कॉलेज में बोलता देख प्रोत्साहित किया। जसदेव सिंह ने स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती गीता बजाज की पुत्री कृष्णा से विवाह किया था। रेडियो पर काम करने का जुनून ऐसा कि 5 मई को शादी और 6 मई को सुबह 5:30 बजे आकाशवाणी पहुंच गए। देश-दुनिया के अधिकतर लोग समझते हैं कि जसदेव सिंह खेल के ही उद्‌घोषक थे। बहुत कम लोगों को जानकारी है कि उन्होंने गुरुनानक देव के जन्मोत्सव पर पाकिस्तान में ननकाना साहब जाकर कमेंट्री की। इंदिरा गांधी और संजय गांधी की अंतिम यात्रा व भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा की उड़ान का जीवंत हाल सुनाया। गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस परेड़ का आंखों देखा हाल बरसों तक जसदेव सिंह ही सुनाते रहे। फिराक

उनकी आवाज को हर कोई पहचानता था

गोरखपुरी को मिले ज्ञानपीठ अवार्ड की कमेंट्री भी की। उन्होंने बरसों दूरदर्शन पर लोकप्रिय कार्यक्रम प्रश्नोत्तरी भी प्रस्तुत किया। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तानों में सुनील गावस्कर और कपिल देव से उनकी मित्रता थी। उन्हेें भारत सरकार ने पदमश्री और पदमभूषण से भी अलंकृत किया। वे दुनिया के पहले उद्घोषक थे जिन्हें अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अधिवेशन में 16 सितंबर 1988 को

ओलंपिक ऑर्डर से नवाजा गया। उनके प्रशस्ति पत्र में लिखा गया कि आप शब्दों की शक्ति को पहचानते हैं और खेलों के लिए उसका सुंदर और सही इस्तेमाल करते है। जसदेव सिंह को उर्दू-हिंदी की सैकड़ों शायरी व कविताएं याद थी। उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में सैकड़ों आलेख लिखे। उन्होंने एक हॉलीवुड फिल्म में अभिनय भी किया। आवाज का यह जादूगर 25 सितंबर को हमेशा के लिए खामोश हो गया।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

19

राजेंद्र सिंह

गंगा की अविर

नदियां हमारी सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक हैं। इनके सम्मान के दिखावे के लिए हम नदियों के किनारे आरती और उत्सवों का आयोजन करते हैं। अपनी सेहत के लिए तो अच्छे से अच्छे चिकित्सक की तलाश करते है लेकिन यह नहीं जानते कि नदियों की सेहत हमारी सेहत से जुड़ी है। आज तो सबसे प्रदूषित नदी वाला शहर ही विकसित शहर कहलाता है। इसलिए निर्मलता के काम विकास के काम माने जाते है। अविरलता को विकास का पर्यायवाची नहीं माना जाता। इसलिए दिल्ली, कोलकाता व कानपुर जैसे प्रदूषित नदियों वाले शहर विकसित कहलाते हैं।

गंगा की अविरलता को हमारे समाज और सरकार ने विकास विरोधी मान लिया है। इसलिए हमारे सबसे बड़े नेता अब कहते है कि हमें विकास करना है। गंगा को निर्मल बनाना है। निर्मलता, अविरलता के बिना संभव नहीं है। अविरलता ही निर्मलता को बनाती और टिकाती है। फिर भी हम इसे भूल गए हैं। सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रीय हरित न्याय प्राधिकरण तथा भारत सरकार सभी एकमत होकर गंगा को पर्यावरणीय प्रवाह द्वारा अविरलता देने को सहमत है। दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में 18 सितंबर को हुए गंगा सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी गंगा को पर्यावरणीय प्रवाह देने के लिए 15 दिनों में रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। गंगा में अविरलता का अर्थ है कि गंगा मेें बिना किसी अवरोध के जलधारा प्रवाहित होती रहे। पर्यावरणीय प्रवाह नष्ट होने से नदियां मर जाती है। जब नदियां रास्ता बदलती है तो सभ्यताएं भी नष्ट

हो जाती है। आज अविरलता की बाधाएं इसलिए है क्योंकि हमें अपनी संस्कृति और सभ्यता की चिंता नहीं केवल विकास की चिंता है। विकास, गंगा की अविरलता में बड़ा बाधक है। विकास की लालसा इसकी प्राचीन अविरलता को पुन: नहीं पाने देगी। गंगा पर बांध बनाने वाली कंपनियां हमें बिजली और अनाज का लालच देती है। यह तो हम गंगा की अविरलता से ही प्राप्त कर सकते है। नदी का अज्ञान हमें आज हमारी मां गंगा से ही अलग कर रहा है। गंगा को कहते मां है और इससे ही कमाई करते है। अविरलता की सबसे बड़ी बाधा ही इन बड़ी कंपनियोंं की कमाई है। अविरलता से इनकी कमाई पर रोक लग जाती है। नए बांध बनने रुक जाते है। पावर कंपनियां गंगा की अविरलता में दूसरी सबसे बड़ी बाधा है। गंगा की समग्रता को समझने में सबसे बड़़ी अड़चन यह है कि हम गंगा

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

20

स्मृति

रलता में बाधाएं को केवल जल प्रवाह मान बैठे है। गंगा केवल विशिष्ट गुणों वाले जल का प्रवाह ही नहीं बल्कि हमारे धार्मिक, संास्कृतिक, आध्यात्मिक व वैज्ञानिक सभ्यता का आधार है। लेकिन हम इन सबको भूलते जा रहे हैं। इसलिए अब कुंभ हमारे लिए स्नान मात्र का अवसर इस मान्यता के कारण रह गया कि कुंभ स्नान करने से हमारे पाप धुल जाते है। लेकिन हमारी यह समझ पूरी नहीं है। हम गंगा के प्रति केवल आरती और उत्सव करते हैं। चूंकि हमारा व्यवहार मां के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक संबंधों को भूल गया है। इसलिए हम गंगा मां की अविरलता के अनुकूलन की दिशा में आगे नहीं बढ़ पा रहे। गंगा देश के लिए लिटमस पेपर की तरह है। यही हमारे स्थायी और सनातन विकास का आधार है। अगर हमारी नदियां गंगा की तरह मरणासन्न हालत में है तो इसका अर्थ ये है कि हम विकास के लालच में अंधे हो गए है। हमें अब गंगा की अविरलता समझ में

नहीं आ रही। यदि हमने गंगा के विनाश की असली वजह को गंगा घाटी में प्राकृतिक संपदा का विनाश, मिट्टी का कटाव और उस पर अतिक्रमण और भू-जल का अतिशोषण होने दिया तो फिर अविरलता की बात कैसे करेंगे? यह अतिक्रमण, प्रदूषण और गंगा के जल प्रवाह क्षेत्रों का शोषण हमारा गंगा के साथ अनुकूलन नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन का नकारात्मक कारण बन रहा है। इस कारण को बदलना है तो गंगा घाटी में प्राकृतिक खेत, प्रदूषण मुक्त उद्योग और गंगा के सतत प्रवाह को सम्मान देने की जरूरत है। आज विकास के नाम पर गंगा नदी मेें हर जगह बन रहे बांध विनाश कर रहे है। खनन और जंगलों के कटान से गंगा क्षेत्र में जो जलवायु परिवर्तन हुआ उससे केदारनाथ में वर्ष २०१३ में हुई अतिवृष्टि और सूखा दोनों हालात बन रहे है। इसकी वजह से कभी नदी प्रवाह कभी सूख जाता है तो कभी बाढ़ के रूप में महाप्रलय कर

देता है।चार धार सडक़ योजना से गंगा में आने वाली मिट्टी, गिट्टी, पत्थर भी गंगा की अविरलता में बाधक है। बड़ी कंपनियां गंगा पर प्रदूषण मुक्त बितली बचाने का स्पप्र दिखाती है। कभी गंगा के जल से सिंचाई का रास्ता। ये कभी भी मानवीय उपयोग किए हुए जल से खेती, बागवानी और अन्य उपयोग के रास्ते नहीं बताते। इसीलिए पवित्र गंगा जल हम गन्ने जैसी फसल में उपयोग करते है। जबकि यह तीसरी श्रेणी के जल में उगाया जा सकता है। इस बाधा को न राज समझता है और न ही समाज। गंगा की अविरलता की बाधाएं दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। इन बाधाओं को तोडऩा है तो हमें गंगा और भारत की छोटी-बड़ी नदियों को समझना और सहेजना होगा। नदियों को दूषित करने वालों के खिलाफ सत्याग्रह करना होगा। जल शोधन कर अपने जीवन को चलाना जब हम सीख जाएंगे तब ही गंगा की अविरलता की दिशा में आगे बढ़ेंगे।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

21

नंधौर बनेगा उत्तराखंड का तीसरा टाइगर रिजर्व

केदार दत्त बाघ संरक्षण में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहे उत्तराखंड मेें नंधौर राज्य का तीसरा टाइगर रिजर्व बनेगा। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) इसे लेकर पहले ही सैद्वांतिक सहमति दे चुका है। अब 15 जून को होने वाली राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में नए टाइगर रिजर्व पर मुहर लग सकती है। यही नहीं, टिहरी वन प्रभाग के तहत उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित गंगी को कंजर्वेशन रिजर्व बनाने का प्रस्ताव भी बोर्ड के समक्ष रखा जाएगा। इसके अस्तित्व में आने पर प्रदेश में कंजर्वेशन रिजर्व की संख्या बढ़कर पांच हो जाएगी। उत्तराखंड में प्रोजेक्ट टाइगर लागू होने के बाद बाघ के संरक्षण के प्रयासों में काफी तेजी आई और बाघों की संख्या के लिहाज से उत्तराखंड (361) देश में दूसरे स्थान पर है। विश्व प्रसिद्ध कार्बेट टाइगर रिजर्व

की इसमें मुख्य भूमिका रही है। बाघ संरक्षण में मिली सफलता के बाद राजजी नेशनल पार्क और उससे सटे क्षेत्रों को मिलाकर राजाजी टाइगर रिजर्व बनाया गया। इसके अच्छे नतीजे भी सामने आए हैं और वहां बाघों की संख्या 34 के लगभग है। बेहतर वासस्थल को देखते हुए पूर्व में राज्य में दो और टाइगर रिजर्व बनाने पर जोर दिया गया। नवंबर 2016 में हुई स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में हल्द्वानी, तराई पूर्वी व चंपावत वन प्रभागों के कुछ हिस्सों को मिलाकर वर्ष 2012 में बने नंधौर अभयारण्य के अलावा उप्र के पीलीभीत टाइगर रिजर्व के उत्तराखंड में स्थित बफर जोन सुरई रेंज (तराई पूर्वी वन प्रभाग) को टाइगर रिजर्व बनाने के प्रस्ताव रखे गए। फिर इसे एनटीसीए को भेजा गया। गत वर्ष एनटीसीए ने नंधौर और सुरई को टाइगर रिजर्व बनाने को सैद्वांतिक सहमति दे दी थी।

एनटीसीए की हरी झंडी के बाद अब प्रस्तावित नंधौर टाइगर रिजर्व का मसला 15 जून 2018 को हुई बैठक में रखा गया। बोर्ड की मुुहर के बाद विशेषज्ञ समिति इस रिजर्व के सीमांकन आदि का परीक्षण करने के साथ ही जनता के सुझाव लेकर रिपोर्ट देगी। फिर सरकार इसकी अधिसूचना जारी करेगी। गंगी गांव समृद्ध है मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डीवीएस खाती के मुताबिक नंधौर टाइगर रिजर्व के अलावा गंगी कंजर्वेशन रिजर्व का प्रस्ताव भी बोर्ड के समक्ष रखा जाएगा। 3500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित टिहरी वन प्रभाग का गंगी क्षेत्र बुगयालों, औषधीय पौधों, हिमालयन थार, भूरा भालू समेत अन्य वन्यजीवों के लिए प्रसिद्ध है। गंगी को कंजर्वेशन बनाने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीणों ने भी सहमति दी है। इस क्षेत्र में गंगी गांव पड़ता है। सुरई पर बाद में होगा विचार राज्य में सुरई टाइगर रिजर्व का प्रस्ताव भी है। तराई पूर्वी वन प्रभाग की सुरई रेंज उप्र के पीलीभीत टाइगर रिजर्व का बफर जोन है। इसे देखते हुए उत्तराखंड ने सुरई के साथ ही इससे सटी खटीमा व किलपुरा रेंज के 237 वर्ग किमी को मिलाकर नया टाइगर रिजर्व प्रस्तावित किया। यहां भी बाघों की अच्छी खासी संख्या है। बताया जा रहा है कि इस रिजर्व का प्रस्ताव वन्यजीव बोर्ड की अगली बैठक में लाया जा सकता है। नंधौर टाइगर रिजर्व का खाका प्रस्तावित नंधौर टाइगर रिजर्व में नंधौर वाइल्इलाइफ सेंचुरी के कोर और बफर जोन को टाइगर रिजर्व में रखा जाएगा। इसमें 270 वर्ग किमी कोर और 578 वर्ग किमी क्षेत्र बफर जोन होगा। नंधौर क्षेत्र बाघ समेत दूसरे वन्यजीवों के लिहाज से कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व की भांति समृ़द्ध है।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

22

रेहड़ी फेरीवालेः असुविधा और अभावों के बीच असुरक्षित भविष्य की दुनिया

देश में करीब 15 करोड़ लोग ऐसे हैं जो सीधे या परोक्ष रूप से स्ट्रीट वेंडिंग के कार्य से जुड़े हुए हैं।

अविनाश चंद्र किसी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, स्थानीय बाजार या सड़क किनारे खड़े होकर या फेरी लगाकर दिन-प्रतिदिन के कार्यों में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं को बेचकर आजीविका चलाने वाले पथ विक्रेताओं (स्ट्रीट वेंडर्स) से हम सभी का सामना अक्सर होता है। ये वेंडर्स स्वरोजगार के माध्यम से न केवल अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं बल्कि उपभोक्ताओं को सस्ते दर पर

उनकी सहूलियत वाली जगह पर सामान उपलब्ध कराकर देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाते हैं। क्या है स्ट्रीट वेंडर्स की भूमिका एक अनुमान के मुताबिक देश में करीब 15 करोड़ लोग ऐसे हैं जो सीधे या परोक्ष रूप से स्ट्रीट वेंडिंग के कार्य से जुड़े हुए हैं। इतना होने के बावजूद भी रेहड़ी पटरी व्यवसायी और फेरीवाले समाज में हमेशा से हाशिए पर रहे हैं। आजीविका कमाने

और दूसरों के लिए रोजगार पैदा करने वाले ये छोटे दुकानदार और फेरीवाले तमाम सरकारी कल्याणकारी सुविधाओं जैसे सरकारी ऋण, सुरक्षा बीमा योजनाओं आदि से भी वंचित रह जाते हैं। यही नहीं शासन और प्रशासन द्वारा भी इन्हें शहर की समस्या में इजाफा करने वाले और लॉ एंड ऑर्डर के लिए खतरे के तौर पर देखा जाता है। लॉ एंड ऑर्डर कायम रखने के नाम पर प्रशासन द्वारा

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

23

कितने काम के हैं सरकारी कानून अक्सर रेहड़ी पटरी वालों के व्यवसाय को उजाड़ने, सामानों की जब्ती, विक्रेताओं के साथ बदसलूकी जैसे कार्य किए जाते हैं। अधिकारों से वंचित फेरी और रेहड़ी वाले दरअसल, शहरी गरीबी में एक बड़ी आबादी उन छोटे दुकानदारों और फेरीवालों की है जो तमाम सरकारी कल्याणकारी सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं। अनौपचारिक क्षेत्र में होने के कारण इनकी मांग भी प्रायः दबी रह जाती है। गैर सरकारी संस्थानों, नागरिक संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा पथ विक्रेताओं के अधिकारों को लेकर लड़ी गई लंबी लड़ाई के बाद शहरी इलाकों के पथ विक्रेताओं (स्ट्रीट वेंडर्स) के हितों की रक्षा करने एवं पथ विक्रय गतिविधियों को नियमित करने के उद्देश्य से 19 फरवरी 2014 को उच्च सदन (राज्य सभा) द्वारा स्ट्रीट वेंडर्स (प्रोटेक्शन ऑफ लाइवलीहुड एंड रेग्युलेशन ऑफ स्ट्रीट वेंडिंग)

विधेयक पारित किया गया। स्ट्रीट वेंड्रर्स की वैधानिकता, सुरक्षा, जीवनस्तर में सुधार के लिए कानून बने हैं। हालांकि, इस विधेयक के आने से पहले कई विवाद भी उठे। केंद्र सरकार ने इसे राज्य सूची का विषय बताकर राज्यों के ऊपर जिम्मेदारी थोपने का प्रयास किया। केंद्र सरकार का तर्क था कि स्ट्रीट वेंडर संबंधी नीतियां शहरी नीति के अंतर्गत हैं जो कि राज्य सूची में आता है इसलिए केवल राज्य ही इस पर कानून बना सकते हैं। जबकि यह महज स्ट्रीट वेंडरो से संबंधित नीति ही नहीं, बल्कि शहरी गरीबों का जीवन स्तर भी इससे प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा हुआ है। सर्वे में सामने आता है शोषण गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा निजी स्तर पर कराए गए सर्वे में पाया गया था कि स्ट्रीट वेंडरों द्वारा उनके गैरकानूनी दर्जे के कारण गलत लोगों को काफी मात्रा में घूस या अवैध राशि देनी पड़ती थी। इस

बहरहाल, स्ट्रीट वेंड्रर्स की वैधानिकता, सुरक्षा, जीवनस्तर में सुधार, सामाजिक एवं आर्थिक लाभ केंद्रित स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट में कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं जो इनकी विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है। इसके मुताबिक प्रत्येक शहर में एक टाउन वेंडिंग कमेटी गठित होगी जो म्युनिसिपल कमिश्नर या मुख्य कार्यपालक के अधीन होगी। यही कमेटी स्ट्रीट वेंडिंग से जुड़े

अध्ययन में यह अंदाजा लगाया गया कि घूस की यह रकम करीब 400 करोड़ प्रति वर्ष थी। श्रम मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक कुल श्रम बल का करीब 93 प्रतिशत हिस्सा असंगठित क्षेत्र में लगा है। इसका एक बड़ा हिस्सा स्ट्रीट वेंडरों या फेरीवालों के रूप में है। एक तरफ संगठित यानी औपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों का जीवनस्तर ऊंचा और आमदनी अधिक है वहीं इन श्रमिकों को दो जून की रोटी के लिए भी अपेक्षाकृत कड़ी मेहनत करनी होती है। इन श्रमिकों को वैसी सरकारी सुविधाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता जो संगठित क्षेत्र के श्रमिकों को प्राप्त है। आज असंगठित श्रमिकों का देश के जीडीपी में योगदान करीब 65 प्रतिशत है, जबकि कुल बचत में इनका योगदान मात्र 45 प्रतिशत है। स्ट्रीट वेंडर भी असंगठित क्षेत्र के श्रमिक हैं, जिनका देश की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान है। इनके द्वारा बेचे

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

24

सभी मुद्दों पर निर्णय लेगी। इस कमेटी में 40 प्रतिशत चुने गए सदस्य होंगे जिसमें से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होगी। कमेटी को सभी स्ट्रीट वेंडरों के लिए पहचान पत्र जारी करना होगा। इसके पूर्व उनकी संख्या और निर्धारित क्षेत्र या जोन सुनिश्चित करने हेतु एक सर्वे कराया जाएगा। इसमें उनके लिए भिन्न-भिन्न जोन तय करने का भी प्रावधान है। प्रत्येक जोन

में उसकी आबादी के 2.5 प्रतिशत वेंडर ही होंगे। यदि उनकी संख्या इससे अधिक होती है तो उन्हें दूसरे जोन में स्थानांतरित किया जाएगा। विधेयक में स्पष्ट प्रावधान है कि वेंडरो की जो भी संपत्ति होगी उससे उन्हें वंचित नहीं किया जा सकेगा और न ही उनके किसी सामान को क्षति पहुंचाई जाएगी। यदि किसी जोन में उसकी कुल आबादी के 2.5 प्रतिशत से अधिक

जाने वाले अधिकांश सामान लघु, मध्यम उद्योगों में तैयार होते हैं। उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट को यदि इसकी मूलभावना के तहत लागू करा लिया जाए तो तमाम समस्याओं का समाधान एक झटके में ही संभव है। वर्ष 2014 में पहले यह कानून पास होने और बाद में एक चाय वाले (नरेंद्र मोदी) के प्रधानमंत्री बनने के बाद रेहड़ी पटरी व्यवसायियों के मन में उम्मीद की किरण जगी। उन्हें लगा कि चाय वाले के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी समस्याओं का त्वरित निवारण होगा। किंतु गरीबों और वंचितों का हितैषी होने का दावा करने वाली राज्य सरकारों ने इस कानून की खूब अनदेखी की। केंद्र सरकार की योजना रोजगार के आंकड़ों में रेहड़ी पटरी वालों की संख्या को भी जोड़ने की है। केंद्र सरकार की योजना रोजगार के आंकड़ों में रेहड़ी पटरी वालों की संख्या

वेंडर होंगे तो उन वेंडरों को 30 दिन पूर्व नोटिस दी जानी जरूरी होगी, तभी उन्हें दूसरे जोन में स्थानांतरित किया जा सकेगा। नोटिस की समयावधि के बावजूद भी यदि कोई वेंडर उस जोन को खाली नहीं करता है तब उस पर 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना और अंततः बलपूर्वक हटाया जा सकेगा अथवा उनके सामानों को जब्त किया जा सकेगा।

इसकी एक सूची वेंडर को सौंपनी होगी तथा उचित जुर्माने के साथ उन जब्त सामानों को वापस लौटाया जा सकेगा। कुल श्रम बल का करीब 93 प्रतिशत हिस्सा असंगठित क्षेत्र में लगा है। कुल श्रम बल का करीब 93 प्रतिशत हिस्सा असंगठित क्षेत्र में लगा है। विधेयक में स्ट्रीट वेंडर्स की सामाजिकआर्थिक दशा सुधारने की

को भी जोड़ने की है। थिंक टैंक सेंटर फॉर सिविल सोसायटी द्वारा एकत्रित आंकड़ों के मुताबिक कानून लागू करने की संवैधानिक अंतिम तिथि अक्टूबर 2014 थी लेकिन 19 राज्यों ने इसके काफी बाद योजना को अधिसूचित किया। आठ राज्यों ने तो किसी स्कीम के बगैर ही वेंडर्स की परिगणना करा ली। चार राज्यों ने अबतक नियम अधिसूचित नहीं किए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 30 राज्यों के कुल 7263 शहरों/कस्बों में से मात्र 33 प्रतिशत (लगभग 2400) शहरों में ही टाऊन वेंडिंग कमेटी का गठन हुआ है। राजधानी दिल्ली में 27 टाऊन वेंडिंग कमेटियों का गठन हुआ है लेकिन वेंडर्स द्वारा एक दशक पूर्व कराए गए पंजीकरण के आधार पर ही कमेटी के सदस्यों को चुन लिया गया। एनडीएमसी के एक मामले में टाऊन वेंडिंग कमेटी के गठन के लिए वेंडर्स के प्रतिनिधियों को चुनने की प्रक्रिया में केवल

दिशा में भी महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। इस कानून के अमल में आने के बाद इनकी गैरकानूनी स्थिति भी समाप्त हो गई जिसकी वजह से वे कई तरह की सरकारी लाभ और योजनाओं से वंचित रह जाते थे। इसी वजह से वे संस्थागत कर्ज सुविधा का लाभ भी नहीं ले पाते थे तथा कई तरह के सरकारी विभागों और कर्मियों को रिश्वत देना पड़ता था।

600 वेडर्स को वोट डालने की अनुमति दी गई जबकि वहां कुल 9000 वेंडर्स पंजीकृत हैं। स्ट्रीट वेंडर्स की शिकायतों के निष्पक्ष समाधान के लिए सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र निवारण तंत्र की स्थापना का प्रावधान है। रिपोर्ट एकत्रित किए जाने तक इस निवारण तंत्र के समक्ष कुल 57 मामले लाए गए थे जिनमें से 47 मामले विक्रेताओं द्वारा उन्हें गैर कानूनी तरीके से हटाने से संबंधित थे। मजे की बात है कि उक्त 47 मामलों में से 24 मामलों में फैसला विक्रेताओं के ही खिलाफ गया। कानूनन ‘नो वेंडिंग जोन’ घोषित करने और विक्रेताओं को हटाने पर रोक है लेकिन नगर निगमों के द्वारा नियमित रूप से वेंडर्स को हटाने का कार्य जारी है.. यह तो तब है जबकि केंद्र सरकार की योजना रोजगार के आंकड़ों में रेहड़ी पटरी वालों की संख्या को भी जोड़ने की है।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

25

2गीत

आ गए बादल र क न ब ्क श अ ब ज ें म तुम्हारी याद आ गए बादल। र क ल क नि र ाह ब े स हमारी आंख ास आ करके प े ार म ह ो त ा ाय प ो ज ्हा हमें तन आ गए बादल। र क ल च म र ु त आ ए ु ह ो लिपटने क बन गए बादल ल ाद ब ो त ी ख ू स ो ज ख ं हमारी आ आ गए बादल। र क ड़ म ु घ ो ख े द ां ह क े छुपे थे य क हो गए गायब ान च अ ें म ों ख ं आ े य े थ अभी तक बादल। ए ग आ र क ट ल प र फि तुम्हे भूला तो देखो ने को हमें पागल र क ो त े स र ाग स ो ज े ठ कभी रू बादल। ए ग आ र क क ट भ न श हमारे गांव में गुल

फिर, मुझे सुनाओ ल ज ग ीत ग ाओ प्यासे मन की, प्यास बुझ , झूमो गाओ। आ ें म ्ती स म । ाओ ज र दिल की धड़कन, कम क कर, जल बरसाओ न ब ल ाद ब ाओ न ु स हाल ए दिल कुछ, सुनो फूल खिलाओ। ो, द ें म न श ल ु ग ाओ। मेरी उलझन, कुछ सलु झ अपने मन की, बात बताओ गुलशन य े ड ां प ोक श अ ॉ. ड ाओ। आकर दुख में, हाथ बट बहराइच, यूपी

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

26

दूध में तुलसी डालकर पीने के 5 बेहतरीन फायदे, जो आपने कहीं नहीं सुने होंगे

दूध पोषण के लिहाज से अमृत के समान है और तुलसी को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है जो आपकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर कई रोगों से आपकी रक्षा करती है। इन दोनों का मिश्रण कर लिया जाएं, तो पोषण के साथ-साथ सेहत और उससे जुड़े कई फायदे पाए जा सकते हैं। अब जब भी आप दूध पिएं, उसमें तुलसी की पत्त‍ियां डालें और पाएं यह 5 फायदे : 1. दमा के मरीजों के लिए यह उपाय फायदेमंद है। खास तौर से मौसम में बदलाव होने पर होने वाली सांस संबंधी समस्याओं से बचने के लिए दूध और तुलसी का यह मिश्रण बेहद लाभकारी होता है। 2. सि‍र में दर्द या माइग्रेन की समस्या होने पर यह उपाय आपको रोहत देगा। जब भी माइग्रेन का दर्द हो आप इसे पी

सकते हैं, रोजाना इसका सेवन करने से आपकी समस्या भी खत्म हो सकती है। 3. तनाव अगर आपके जीवन का भी अभिन्न अंग बन गया है, तो दूध में तुलसी के पत्तों को उबालकर पिएं, आपका तनाव दूर होगा और धीरे-धीरे तनाव की समस्या ही समाप्त हो जाएगी। 4. हृदय की समस्याओं में भी यह लाभदायक है। सुबह खाली पेट इस दूध को पीने से हृदय संबंधी रोगों में लाभ पाया जा सकता है। इसके अलावा यह किडनी में होने वाली पथरी के लिए भी अच्छा उपचार है। 5.तुलसी में कैंसर कोशिकाओं से लड़ने का गुण होता है, अत: इसका सेवन आपको कैंसर से बचा सकता है। इसके अलावा सर्दी के कारण होने वाली सेहत समस्याओं में भी यह कारगर उपाय साबित होगा।

शहद और लहसन साथ में लेने के 5 फायदे

शहद और लहसन, दोनों के अपने-अपने लाभ हैं, और कुछ परिस्थितियों में नुकसान भी। लेकिन इन दोनों का साथ में सेवन करने से जरूर आप पा सकते हैं सेहत से जुड़े यह 5 फायदे। लेकिन पहले जानिए कि कैसे करें लहसन और शहद का साथ में सेवन : लहसन को छीलकर इसकी कली को हल्‍का सा दबाकर कूट लें और फि‍र इसमें शहद मिलाइए। कुछ देर के रखने के बाद लहसन में जब शहद अंदर तक भर जाए, तब इसका सेवन करें। ध्यान रहे कि इसका सेवन आपको सुबह खाली पेट करना है। अब जानिए इसके सेवन से होने वाले यह 5 लाभ : 1. प्रतिरोधकता : अगर आपकी प्रतिरोधक क्षमता में कमी आई है, तो इसका सेवन शुरू करें, शरीर की रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने के लिए इसका उपयोग बेहद फायदेमंद साबित होगा। 2. इंफेक्शन : किसी भी तरह के फंगल इंफेक्शन से बचने के लिए यह लाभकारी है। एंटी फंगल और एंटी बैक्टीरियल गुणों से भरपूर यह मिश्रण आपको किसी भी प्रकार के इंफेक्शन से बचाए रखने में सहायक है। 3. कोलेस्ट्रॉल : शहद और लहसुन, दोनों ही कोलेस्ट्रॉल को कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं। यह हृदय की धमनियों में जमे हुए कोलेस्ट्रॉल को भी कम करने में मददगार साबित होता है। 4. खराश : गले की समस्याएं जैसे खराश व सूजन आदि में इसका उपयोग फायदेमंद है। एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों के कारण यह आपको पूरी तरह से राहत दिलाने में सहायक होगा। 5. सर्दी : सर्दी जुकाम से बचने के लिए इस मिश्रण का प्रयोग फायदेमंद है। तासीर में गर्म होने के कारण यह सर्दी जनित रोगों से आराम दिलाने में काफी कारगर है।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

27

सामुदायिक नेतृत्व के लिए रेमन मैगसेस पुरस्कार और जल संरक्षण कार्य के लिए स्टॉकहोम जल पुरस्कार से सम्मानित हम चाहे जितनी भी सावधानी बरतें, हर 50 या 100 सालों में बाढ़ जैसी आपदा आ ही जाती है। हमारा रवैया कुछ ऐसा है- एक बार बाढ़ खत्म हो जाए, फिर हर मुमकिन समाधान के बारे में सोचा जाएगा। इतना सब होने के बाद जो प्रवृत्ति बनी हुई है, उसके लिए ढाक के तीन पात मुहावरे का इस्तेमाल बिल्कुल अनुचित नहीं है। बाढ़ और सूखे से मुक्ति के लिए नदियों को और प्रकृति को मानवाधिकार की तरह ही अधिकार देना होगा। सबसे पहला अधिकार नदियों का है। नदियों का बहता हुआ जल सौ साल में जहां तक पहुंचता है, वह जमीन नदी की जमीन होती है। उस जमीन को नदी के लिए ही उपयोग करना चाहिए। इस भूमि की तीन श्रेणियां- नदी प्रवाह क्षेत्र, सक्रिय बाढ़ क्षेत्र और उच्चतम बाढ़ क्षेत्र होती हैं। उच्चतम बाढ़ क्षेत्र निष्क्रिय कहलाता है। यहां करीब 100 साल में एक या दो साल मेें ही वर्षा जल पहुंचता है और बाढ़ आती है। सक्रिय बाढ़ क्षेत्र में जहां 25 साल में पांच बार बाढ़ आती है वही सदैव नदी जल के प्रवाह वाला क्षेत्र नदी प्रवाह क्षेत्र कहलाता है। इन तीनों तरह की भूमि को नदी के लिए संरक्षित रखना राज, समाज व वैज्ञानिकों का साझा दायित्व होता है। प्राकृतिक प्रवाह नदी का अधिकार होता है किंतु आजकल नदियों को केवल अन्न और विद्युत उत्पादन का साधन मान लिया

बाढ़ और सूखे से मुक्ति के लिए गया है। विकास की शातिर भाषा में बांधों को बाढ़ रोकने वाला साधन भी बताया जाता है। यह सही है कि बांध कभी-कभी बाढ़ रोकने में मदद कर सकता है, लेकिन ज्यादातर अतिवृष्टि या बादलों के फटने पर बांध बहुत बड़ी बाढ़ का संकट पैदा करते हैं। इस वर्ष केरल की बाढ़ तो बांधों के कारण ही आई। सरकारें नदियों की आजादी छीनने का हक नहीं रखतीं, फिर भी नदियों से यह हक छीन लिया गया है। इसलिए जब बांध भर जाते हैं तो सभी बांधों के दरवाजे एक साथ ही खोल दिए जाते हैं। केरल की बाढ़ का एक बड़ा कारण यह भी है। यदि आप नदियों की आजादी को मानवीय आजादी के साथ जोड़कर उन्हें आजाद नहीं करेंगे

तो नदियों का क्रोध एक बड़ी बाढ़ के प्रकोप के रूप में बढ़ेगा। आजादी के बाद से भारत में बाढ़ का यह प्रकोप प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। केरल की बाढ़ इसका एक बड़ा प्रमाण है। यह बाढ़ हमारे तथाकथित विकास ने ही पैदा की है। मानवीय सेहत की तरह ही नदी की सेहत को ठीक रखने का अधिकार भी नदी को ही होता है, लेकिन मानव और सरकारों ने नदी के सेहत के अधिकार को नष्ट कर दिया है। भारत की सभी नदियों को प्रदूषणकारी नालों से जोड़कर देश की सारी सरकारी संस्थाओं, नगरपालिकाओं, पंचायतों ने अपना गंदा पानी नदियों में बेरोकटोक ही डाल दिया है। मानवीय शिराओं और धमनियों की तरह धरती की शिराओं और धमनियों यानी नदियों को पूर्ण रूप से प्रदूषित कर दिया है। नदियों का यह प्रदूषण अब नदियों की सेहत के साथ मानवीय सेहत को भी बिगाड़ रहा है। इसलिए केरल सहित भारत के अन्य इलाकों की नदियों के प्रदूषण के कारण बीमारियां बढ़ रही है। चवालीस नदियों वाले प्रदेश केरल की अधिकांश नदियों में आज औद्योगिक एवं रासायनिक प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ गया है। जिस तरह दूध से भरी मटकी में एक बूंद छाछ या मट्ठा पूरी मटकी के दूध को दही में बदल देता है, उसी तरह औद्योगिक और रासायनिक प्रदूषण भी बड़े से बड़े

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

28

जल भंडार को प्रदूषित कर देते है। यही वजह है कि आज केरल की बाढ़ में पीने के पानी का संकट खड़ा हो गया है। खनन और खनन से बने गड्ढों ने भी नदियों की सेहत खराब की है। नदियों में आने वाले प्लास्टिक, ऊपर से आई गाद के साथ नदियों के तल में जमती जाती है और नदी का प्रवाह स्तर ऊपर उठता जाता है। सर्व साक्षर केरल, उच्च शिक्षित और विकसित केरल का भयानक रूप से बाढ़ की चपेट में आना हमें सिखाता है कि केवल निजी सुख-सुविधाओं का लालच बढ़ रहा है। हम आज जितनी सुखसुविधाओं के लालची हुए हैं, उतना ही ज्यादा बाढ़ सूखा झेल रहे है। हमारी सुखसुविधाओं से सुसज्जित कांच, सीमेंट व कंक्रीट के भवनों ने गर्मी और जलवायु परिवर्तन का संकट भी बढ़ाया है। इसीलिए बेमौसम बारिश का दौर बढ़ा है। इस साल 8 से 18 अगस्त के बीच जो वर्षा केरल में हुई वह अनियमित थी। इस बारकी अनियमित वर्षा ने केरल में कहर ढाया है। यह दूसरे राज्यों में भी हो सकता है। अभी तक मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, सतना व पटना की बाढ़ से हमेें सीख ले लेनी चाहिए थी, पर हमारी सरकारों ने बाढ़ के विनाश से कोई सीख नहीं ली है। आज भी भारत की भू-सरंचना पर जो निर्माण किए जा रहे हैं, उनसे खतरा बढ़ता ही जा रहा है। धरती कुरुप हो रही है, शहरों का भविष्य संकटमय है और वे बाढ़ व सूखे का खतरा झेलेंगे। बाढ़ जिन क्षेत्रों से मिट्टी लेकर आती है, वहां मिट्टी की कमी के कारण सूखा पड़ जाता है। इसीलिए पूरा देश बाढ़ और सूखे की चपेट में कभी भी आ जाता है। यदि विकास का क्रम, जलवायु परिवर्तन के कारण बदले वर्षा के क्रम के साथ जुड़ जाए तो हम बाढ़-सूखे से बचने की पहल कर सकते है। केरल सजग नागरिकों का राज्य है। इसलिए केरल के राज और समाज को अपना भविष्य सुनिश्चित करने के लिए बाढ़ से बचाव की पहल करनी चाहिए।

जीवन मंत्र गृहस्थ जीवन में आते हैं खुशी के छह बड़े मौके, इन्हें सहेजें

-डॉ.विजय शंकर मेहता

एक गृहस्थ के जीवन में छह बार खुशी के अवसर आते हैं और उसी गृहस्थी में इन छह मौकों पर हम अपनी खुशियों को विदा भी कर देते है। जरा इन अवसरों पर ध्यान दीजिए। पहली बार आप जन्मदाता होते हैं और उस समय सभी माता-पिता घोर लापरवाह रहते हैं। उसके बाद पालक बनते हैं। इस चरण में आप लालन-पालन करने वाले होते हैं और बावले हो जाते है। तीसरे चरण में माता-पिता निर्णायक बन जाते हैं। बच्चे बड़े हो रहे हैं, उन्हें किस स्कूल में भेजना है, उनके भविष्य के लिए क्या निर्णय लेना है... यहां से चिंता शुरू हो जाती है। चौथा चरण आता है जब बच्चे जवान होते हैं। इस दौर मेें बच्चे माता-पिता से छूटकर उनको बाहर की हवा लग चुकी होती है और यही से माता-पिता के जीवन में तनाव प्रवेश कर जाता है। पांचवे चरण में माता-पिता भागीदार बन जाते हैं। बेटी हो तो दामाद ढूंढते हैं, बेटा हो तो बहू की तलाश में लग जाते हैं और खुशियां कलह बनने लगती है। छठा चरण आता है जब बच्चे काम-धंधे के कारण दू चले जाते हैं और माता-पिता उदासी में घिरे बिल्कुल अकेले से रह जाते हैं। इन छह चरण मेें यदि सावधानी रखी जाए तो जो खुशी संतान को जन्म देते समय आई वह अंत तक बनी रहेगी। इस दौरान खुशी इसलिए बचाकर रखिए कि माता-पिता के शरीर से जो पॉजिटिव वाइब्रेशश्न्स निकलते हैं वे बच्चों को भी आज्ञाकारी, विनम्र और संस्कारी बनाएंगे। वरना अपनी ओर आती हुई खुशी आप अपने ही कर्मों से मोड़ देंगे और गृहस्थी बोझ लगने लगेगी।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

29

Mogambo बनकर

अमरीश पुरी की जगह

‘खुश होता’ यह एक्टर, इस वजह से हाथ से निकला रोल मोगैंबो खुश हुआ! 1987 में आयी अनिल कपूर और श्रीदेवी की फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ का यह माेनोलॉग आज भी बच्चे-बच्चे की जुबान पर है। फिल्म में मोगैंबो बने अमरीश पुरी भारी आवाज में जब ‘मोगैंबो खुश हुआ’ कहते थे, तो यह सोच कर कि यह विलेन अब कौन सा खूंखार कदम उठाएगा, एकाएक मन में सिहरन हो जाती थी। कहना गलत नहीं होगा कि निर्माता बोनी कपूर और निर्देशक शेखर कपूर की इस सुपरहिट फिल्म ने फिल्म इंडस्ट्री में अमरीश पुरी को एक नामचीन विलेन के रूप में स्थापित कर दिया था। अब जरा कल्पना कीजिए कि अगर यह रोल अमरीश पुरी की जगह किसी और ने निभाया होता तो कैसा होता? इस फिल्म की रिलीज के लगभग 31 साल बाद यह बात सामने आयी है कि मोगैंबो के किरदार के लिए अमरीश पुरी नहीं, अनुपम खेर पहली पसंद थे। जी हां, पिछले दिनों अभिनेता अमरीश पुरी की 87वीं सालगिरह पर दुनियाभर

में उन्हें याद किया गया. इसी दौरान अनुपम खेर ने भी अनोखे तरीके से इस अभिनेता को याद किया। उन्होंने बताया कि 1987 में आयी हिट फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ से जुड़ा एक रोचक किस्सा है। इस फिल्म में मोगैंबो के किरदार को अमर करने वाले अमरीश पुरी से पहले यह रोल उन्हें मिला था। अनुपम खेर ने बताया कि मोगैंबो का किरदार पहले उन्हें ऑफर किया गया था लेकिन कुछ महीनों बाद उनकी जगह इस रोल के लिए अमरीश पुरी को रख लिया गया। अनुपम बताते हैं कि शुरू में तो उन्हें यह थोड़ा अजीब लगा, लेकिन जब उन्होंने अमरीश पुरी को उस रोल में देखा तो उन्हें समझ आ गया कि अमरीश पुरी ही इस रोल के लिए बेहतर चुनाव थे। मालूम हो कि अमरीश पुरी और अनुपम खेर ने इसके बाद ‘त्रिदेव’, ‘राम लखन’ और ‘दिलवाले nराष्ट्री य ज्वादुलल्हनिया ा ले जाएंगे’सेजैमार्च सी हिट फिल्मों में जनवरी 2019

30

साथ काम किया। बताते चलें कि अनुपम खेर ने ये बातें अपनी आनेवाली फिल्म ‘वन डे : जस्टिस डिलीवर्ड’ के प्रोमोशन के मौके पर बतायीं. इस फिल्म में अनुपम खेर के साथ ईशा गुप्ता हैं और यह फिल्म आगामी पांच जुलाई को रिलीज होगी।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

31

गोदरेज परिवार जानें कैसे चंद्र बनाने से शुरू हुआ इस फैमिली एक युवा पारसी अर्देशिर गोदरेज ने तरह-तरह के कारोबार में हाथ आजमाया, लेकिन सफलता नहीं मिली। एक दिन उसने अखबार में पढ़ा कि मुंबई में चोरी की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। उसके मन में ताला बनाने का ख्याल आया और 1897 में कंपनी बना ली। धीरे-धीरे गोदरेज की एक नहीं कई क्षेत्रों में कई कंपनियां अस्तित्व में आईं। गोदरेज की एक कंपनी ने साल 2008 में चंद्रयान 1 के लिए लॉन्च वीइकल और ल्यूनर ऑर्बिटर बनाए। आज जब गोदरेज परिवार में बिजनेस स्ट्रैटिजी और जमीन को लेकर मतभेद की खबर आई, तो इस ग्रुप की उत्पत्ति की कहानी याद करना लाजिमी हो गया। गोदरेज ग्रुप की स्थापना अर्देशिर गोदरेज और उनके छोटे भाई पिरोजशा गोदरेज ने 1897 में की थी। इसकी उत्पत्ति ताले बेचने से हुई। दरअसल, अर्देशिर ने अखबार में पढ़ा कि मुंबई में चोरी के मामले बढ़ रहे हैं। तब उन्होंने ताले बेचने की शुरुआत की।

निःसंतान थे गोदरेज ग्रुप के संस्थापक

अर्देशिर को कोई संतान नहीं थी जबकि पिरोजशा के चार पुत्र हुए- शोराब, दोसा, बुरजोर और नवल। शोराब निःसंतान थे। दोसा के पुत्र रिशद ने कंपनियां चलाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। हालांकि, वह कंपनी में शेयर होल्डर जरूर रहे। वन्यजीवों एवं फटॉग्रफी के शौकीन रिशद ने की भी कोई संतान नहीं हुई। बुरजोर के बच्चे आदि गोदरेज और नादिर गोदरेज हैं। दोनों गोदरेज प्रॉपर्टीज, गोदरेज इंडस्ट्रीज, गोदरेज कन्ज्यूमर प्रॉडक्ट्स और गोदरेज ऐग्रोवेट का कामकाज देखते हैं। नवल की

संतानें जमशेद गोदरेज और स्मिता गोदरेज या परोक्ष हिस्सेदारी भी है। गोदरेज परिवार कृष्णा हैं। (आदि, जमशेद, नादिर, स्मिता और क्या कर रहे है किनके बच्चे रिशद) के पास गोदरेज ऐंड बॉयस के 9 जमशेद परिवार की होल्डिंग कंपनी से 10 प्रतिशत शेयर हैं जबकि 27 प्रतिशत गोदरेज ऐंड बॉयस के चेयरमैन हैं। स्मिता हिस्सेदारी गोदरेज इन्वेस्टमेंट्स की है। परिवार के कारोबार से जुड़ी नहीं हैं, लेकिन जमीन पर फंसा पेच, दो गुटों में उनके पति विजय कृष्ण और पुत्री नायरिका बंटा गोदरेज परिवार होल्कर बिजनस ऑपरेशन से जुड़ी हैं। ग्रुप की पांच लिस्टेड कंपनियों का कुल आदि के तीन बच्चे तान्या, निसाबा और मार्केट कैप 1.2 लाख करोड़ रुपये है। पिरोजशा बिजनस में अपनी भूमिका निभा कंपनी टोटल इनकम* नेट रहे हैं। उसी तरह नादिर के तीन बच्चे हैं। प्रॉफिट* मार्केट कैप* सबसे बड़े पुत्र बुरजिस गोदरेज ऐग्रोवेट गोदरेज इंडस्ट्रीज 12,284 करोड़ जबकि दूसरे पुत्र शोराब गोदरेज इंडस्ट्रीज 590 करोड़ 16,228 करोड़ का कामकाज देखते हैं। सबसे छोटे पुत्र गोदरेज कन्ज्यूमर 10,676 करोड़ होरमुसजी का फैमिली बिजनस से कोई 2,342 करोड़ 68,595 करोड़ लेनादेना नहीं है। गोदरेज ऐग्रोवेट 6,024 करोड़ जमशेद गोदरेज के पुत्र नवरोज गोदरेज 329 करोड़ 9,691 करोड़ ऐंड बॉयस में गैर-कार्यकारी निदेशक गोदरेज प्रॉपर्टीज 3,236 करोड़ (नॉन-एग्जिक्युटिव डायरेक्टर) हैं जबकि 253 करोड़ 22,017 करोड़ बेटी राइका का इस ग्रुप में औपचारिक ऐस्टेक लाइफसाइंसेज 442 प्रवेश नहीं हुआ है। परिवार के ज्यादातर करोड़ 36 करोड़ 917 करोड़ सदस्य ग्रुप कंपनियों के बोर्ड में शामिल *वित्त वर्ष 2019 *26 जून, 2019; हैं। उनकी ग्रुप की सभी कंपनियों में प्रत्यक्ष स्रोत: ETIG डेटाबेस और बीएसई

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

32

यान-1 तक पहुंचा ताला

ी का कारोबारी सफर

गोदरेज ऐंड बॉयस मुंबई में सबसे ज्यादा जमीन वाली निजी कंपनी है। सरकारी रेकॉर्ड्स में कंपनी के पास विखरोली, नाहुर और कुर्ला में 3,401 एकड़ जमीन है। गोदरेद ग्रुप इन जमीनों पर हाल के वर्षों में कमर्शली बड़ी-बड़ी आवासीय परियोजनाएं विकसित करता रहा है। ऐसा लगता है कि अभी परिवार के बीच उभरे मतभेद का प्रमुख कारण भी रियल एस्टेट बिजनस ही है। परिवार के पास विखरोली में अति-संरक्षित मैनग्रोव के पौधों का बगीचा है। महाराष्ट्र की स्लम अथॉरिटी का आकलन है कि गोदरेज ग्रुप ने विखरोली स्टेश के पास कम-से-कम 300 एकड़ जमीन का अतिक्रमण किया हुआ है। गोदरेज ने मुंबई के पूर्वी उपनगरीय इलाके में 1940 के दशक के शुरुआती सालों में खरीदी थी। यह जमीन मूल रूप से पारसी व्यापारी फ्रैमजी बानाजी को 1830 में ईस्ट इंडिया कंपनी से मिली थी। 1940-41 में यह बिक्री के लिए रखा गया। गोदरेज ग्रुप ने इस जमीन को खरीद लिया तो फिर आसपास के 200 जमीन मालिकों से उनकी जमीनें खरीदने की बातचीत शुरू कर दी। पिछले दशक में गोदरेज ग्रुप मुंबई की अग्रणी रियल एस्टेट सेक्टर का बड़ा प्लेयर बन गया। ताले से लेकर चंद्रयान तक का सफर 1897 युवा पारशी वकील अर्देशिर ने कुछ कारोबार में असफलता मिलने के बाद ताला बनाने की कंपनी स्थापित की।

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

33

1918 गोदरेज ने जानवरों के वसा से मुक्त दुनिया का सबसे पहला वनस्पति तेल युक्त साबुन बनाया। 1923 आलमीरा बनाने के साथ ही फर्नीचर बिजनस में कदम रखा। 1951 स्वतंत्रता के बाद पहले लोकसभा चुनाव के लिए कंपनी को 17 लाख बैलॉट बॉक्स बनाने का सरकारी ठेका मिला। 1952 स्वतंत्रता दिवस पर सिंथॉल साबुन लॉन्च किया। 1958 रेफ्रिजरेट बनाने वाली पहली भारतीय कंपनी बनी। 1974 लिक्विड हेयर कलर प्रॉडक्ट्स की बिक्री शुरू की। 1990 रियल एस्टेट बिजनस में कदम रखा। 1991 कृषि व्यवसाय में भी प्रवेश किया। 1994 गुड नाइट ब्रैंड के तहत मच्छर

मारने वाली चकरी (मैस्किटो मैट्स) बनाने वाली कंपनी ट्रांस्लेक्टा को खरीदा। 2008 चंद्रयान 1 के लिए लॉन्च वीइकल और ल्यूनर ऑर्बिटर बनाए। सोच का फर्क गोदरेज परिवार के एक करीबी सूत्र ने कहा कि मतभेदों के कारण आंतरिक उथल-पुथल नहीं दिख रहा है। उसने कहा, ‘वे बोर्ड मीटिंग्स में जाते हैं और इनका एक-दूसरे के प्रति बेहद सद्भावनापूर्ण व्यवहार है।’ परिवार को जानने वाले एक अन्य व्यक्ति ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘यह सिर्फ वक्त की बात है। नई पीढ़ी भिन्न-भिन्न दिशाओं में बढ़ना चाहती है। वे तेजी से कदम बढ़ाने वाले हैं और अगर कोई उनसे कदमताल नहीं मिला सकेगा तो संघर्ष की स्थिति पैदा होगी ही।’ जमशेद, नादिर और आदि गोदरेज। आदि और जमशेद में अंतर सूत्र के मुताबिक, ‘आदि गोदरेज

अंतरराष्ट्रीय सामाजिक परिदृश्य में छाए रहते हैं। वह बेहद चतुर और कुशाग्र बुद्धि के बिजनसमैन हैं जिनके पास कमोडिटी मार्केट की गहरी जानकारी है। वहीं, जमशेद गोदरेज लोगों की नजर में बहुत कम आते हैं और सामाजिक जीवन का आनंद नहीं उठाते। वह साधारण जीवन जीने वाले और मेहनती हैं।’ किनके बच्चे कहां प्रॉपर्टी मार्केट के एक बड़े एक्सपर्ट ने कहा, ‘आदि के बच्चों का कारोबार पर पूरी पकड़ है। वे बेहद महत्वकांक्षी और बुद्धिमान हैं। पिरोजशा के नेतृत्व में गोदरेज प्रॉपर्टीज के शेयर आसमान छू रहे हैं।’ सूत्रों का कहना है कि जमशेद शायद अपनी भांजी नायरिका को तैयार कर रहे हैं। परिवार के अंदरूनी सूत्रों ने बताया, ‘नायरिका वकील हैं और जमशेद के साथ काम करती हैं।’

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

34

with compliments from : satish tempo transport Gstin NO. -: 09BECPK6207G1ZN 137-a, sk-11, sector-93, noida, g.b. nager (UP) MOB. 9717831967, 9990783451

with compliments from :

shubham dyeing Gstin NO. -: 09BVLPP9862L1ZG mob. 9310736646, 9312171796 specialist:p in:Dyeing of all export oriented fabric Bleaching’ Tie-dye’ Zip’Button, Tabs, Lace Etc. Add. vill. Nangla Charandas] Behind Madhyamik Public School Near court Road Noida phase-11

with compliments from :

righi angle application regd. add : c-187, west vinod nager, delhi 110092 pho 9999223670, 7838788643 email: rightangle.app18@ gmail.com

with compliments from :

smt SHREE MADADEVA traders Gstin NO. -: 07braps5659f1zl add. ed-9 near jhanda chowk new ashok nager delhi 110096 Email : shreemahadevatraders@ gmail.com mob. 9718703555, 9350653555

nराष्ट्रीय ज्वाला

जनवरी से मार्च 2019

35

RNI NO. UTTHIN/1972/02871

ÇUæ·¤ ¢ÁèØÙ â¢Øæ Ñ PAO-30/2018-20

tm vcl Logistics

CHA NO. 11/1946

Venus Container Line Logistics pvt. Ltd. a complete Logistic Solution

head off. 301, 3rd floor, VTm 11, mehra compd. near sakinaka tel.exchange, sakinaka andheri (east), mumbai 400072 tel.022-41025252(100Lines) regional off. venus container line logistics(p)ltd c-14, 2nd floor] dda shade, okhla industraal area, phase-1 behind crown plaza hotel new delhi 110020 ph: 011-4123736/26813794/26813799

राष्ट्रीय Tuticorin ज्वाला Branch : Ahmedabad, Delhi, Dadri, Chennai, Nasik,nPune, जनवरी से मार्च 2019

36