दूर्वा (साहित्यिक पत्रिका) संस्करण नौ Flipbook PDF

दूर्वा (साहित्यिक पत्रिका) संस्करण नौ
Author:  L

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Story Transcript

सा󰏍ह󰏗󰋄क वा󰏏षक 󰎮 प󰏏󰇴का | सं󰎌रण - नौ | स󰇴 2020-2021

शुभकामना संदश

‘दूवा’ प का म ह ी वभाग क छा ाओं क वैचा रक उवरता, रचना कता, क नाशीलता व आकां ाय नत होती है। यह प का पछले कई वष से अनवरत

प से का शत हो रही है।

इस महामारी के समय म जहां स ूण मानव जीवन अ न

तता के

दौर से गुजर रहा है, हमारा मन नरं तर भय, सं ास, अवसाद जैसी

सम ाओं से संघष कर रहा है। वहाँ इस तरह का रचना क ऊजा से प रपूण

यास हमारा मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ मन म

सकारा कता का भाव पैदा करता है। इन वषम प र

तय म भी

दूवा के ड जटल सं रण के काशन के लए ह ी- वभाग को हा दक बधाई व शुभकामनाय।



डॉ. सुमन शमा ाचाया लेडी ी राम कॉलेज

के इस बेरहम दौर से गुज़रते ए , हम सब ने ब त कुछ झेला

है। ब त सी तकलीफ़, ब त तनाव और डर के माहौल से हम सब

जूझे ह और शायद अब भी कई मोच पर लड़ रहे ह। इन सबके बीच हमारी जजी वषा और भ व

के

त हमारी आशा

ने ही

हम जी वत रखा है। ये प का ‘दूवा’ हमारे वभाग क छा ाओं और ा ा पकाओं क अद

मुझे गव है क ऐसी



और साहस का ही एक माण है।

तय म भी अपनी रचना क ऊजा और

कमशीलता को इस खूबसूरत द ावेज़ के प म

ुत करते ए,

हमने जैसे इस क ठन दौर को भी चुनौती दी है। स ादक मंडल क छा ाओं और सा ह

साधुवाद। आप सब

सभा के परामशदाताओं को ब त बधाई और रह, सुर

से लबरे ज़ रह, ई र से यही ाथना है।

त रह और इस सृजनशीलता

ीमती अ मषा अनेजा भारी हदी वभाग

संपादक य जैसा क आप सभी जानते ह क कोरोना महामारी क पहली लहर के भयावह प रणाम से हम उबरे भी नह थे क दूसरी लहर ने धावा बोल दया और जीवन वह का वह अटक गया। बीते दो वष हमारे लए अ ंत संघषपूण और चुनौतीपूण रहे ह। आस-पास हम इसके नकारा क भाव भी देखने को मले ह। हमने

इस साल कई ह य और मूध सा ह कार को भी खो दया।वै क महामारी को देखते ए सभी तरहक शै क ग त व धयां ऑनलाइन पटल पर हो रही है ।एक ओर जहाँ सफाईकम , पु लसकम , ा कम , शास नक वभाग आ द इस क ठन दौर म अपने कत का नवहन कर रहे ह वह दूसरी ओर हमारे श क भी लगातार ऑनलाइन ासेस लेकर ब के भ व को सुंदर बनाने और ान का अलख जगाने म यासर ह ।

कहते ह न क जजी वषा हर एक मनु म सकारा क वचार का संचार कर ही देती है । इसी सकारा कता से हम सभी आगे बढ़ रहे ह। हदी सा ह सभा क छा संघ और श क सलाहकार ने वपरीत समय म भी इस स के माहौल को सकारा क बनाने के लए अनेक ग त व धय का सफ़लतापूवक आयोजन कया है । वभागा एवं वभाग के तमाम श कगण ने हर समय हमारा मनोबल बढ़ाया है । वभाग क सभी छा ाओं ने एकजुटता और सम य का प रचय देते ए वभाग के काय म अपना हर स व योगदान दया है । इस आभासी दु नया म जहाँ हम कसी से प म मल नह सकते थे वह हम दूर से ही आपस म सामंज बठा कर काय को स ा दत करते रहे । हमने नवाग ुक को कॉलेज के अनुभव से जोड़ने का भी यास कया है । साथ ही तृतीय वष क छा ाओं को भी याद संजोने का अवसर दया। हर व ाथ म रचना क और कला क गुण मौजूद होते ह। उस तभा को मंच देने के लए ेक वष 'दूवा' प का नकाली जाती है । इस स म वभाग के ेक व ाथ ने व भ अवसर पर अपनी भागीदारी से वभाग को े रत कया क वे इस तरह के अ ग त व धय का भी आयोजन जारी रखे।यह सं रण अंधेरे म एक रोशनी क करण है जसे का शत करते ए हम हौसला, उ ीद, बल, ऊजा, आस मल रही है क हम इस भयावह प र त को भी मात देकर जीवन म आगे बढ़ सकगे। ेक वष 'दूवा' हाड कॉपी म का शत होती आयी है मगर प र तवश इस सं रण को ई-प का के प म का शत कया जा रहा है । संपादक मंडल ने इस अंक म टय को दूर करने का हर संभव यास कया है । ऑनलाइन काय को करने क वजह से अशु यां हो सकती ह जसके लए स ादक मंडल मा ाथ है । आशा करते ह आपको यह अंक ज़ र पसंद आएगा। हज़ार बक़ गरे लाख आँ धयाँ उठे । वो फूल खल के रहगे जो खलने वाले ह ।। - सा हर लु धयानवी

~ संपादक मंडल

इस अंक म सं करण नौ | 2020-2021

श क सलाहकार डॉ. दशना धवल डॉ. योगेश र ोगी

संपादक मंडल आ ा दीपाली (तृतीय वष) ऋतुजा सह ( तीय वष) आकां ा भ ( तीय वष)

आवरण िच (मुख पृ ) रे णु कुमारी (तृतीय वष)

आवरण िच (अ तम पृ ) ऋ षता रावत ( तीय वष)

िडज़ाइन एवं से टंग आ

ा दीपाली (तृतीय वष)

टाइिपंग ऋतुजा सह ( तीय वष)

शुभकामना संदेश संपादक य 1. सपल 2. हाँ, ये साल गुज़र गया अब 3. र े 4. ी का अ 5. धार 6. धन 7. सकारा क सोच 8. त धा 9. वजूद 10. हर हाल म मं ज़ल पाना है 11. सल सला बदलते रा का 12. क नाएं एवं वा वकता 13. नवी ख़बर 14. फ़ समी ा 15. मेरे देश क भाषा हदी है 16. जलवायु प रवतन 17. कोरोना समय म आम जन के संघष और चुनौ तयां 18. मेहनत : ल और लक र 19. ेम कहानी 20. नारी 21. मेरी पहचान 22. ू ल को अं तम वदाई 23. जब सपना मेरा है तो म ही पूरा क ं गी न 24. नई शु आत (लघु कथा) 25. व क आवाज़ 26. यं पर व ास 27. हर कसी के बस क बात नह 28. सर ती माँ 29. कोरोना 30. ज़दगी 31. अब याद आता है 32. लॉकडाउन और तुम माँ 33. सै नक 34. ी का अ 35. हर पल आता है हर पल जाता है 36. होली 37. पु क समी ा 38. व हदी दवस 39. थारे बन 40. पृ ी 41. बहार ँ म 42. फूल दे ह छमा दे ह 43. ी वा षक रपोट वभागीय ग त व धयां हदी सा ह सभा

-

आकृ त तवारी वचला पांडेय अमृता कुमारी ेता कुमारी आकां ा भ मंजू समर ीत कौर म हमा ो त चौधरी आ ा दीपाली रोज़ी आभा सगर मंजू सौ ा पांडेय तम ा वचला पांडेय ऋतुजा सह ो त चौधरी नीता मु ान यादव ेता कुमारी म लका सौ ा पांडेय आ ा दीपाली रोज़ी समर ीत कौर म हमा कु ता रावत ता नया दलाल रोज़ी अमृता कुमारी ऋ षता रावत आभा सगर ी त कुमारी रोज़ी मुनीबा वचला पा ेय दी ा ीवा व आरती रावत द ा भारती अमृता कुमारी ऋ षता रावत वचला पांडेय

स󰎺पल गरीब के शौक गरीबी देखकर ही मर जाते है , गरीब क ज़ रत स ी होती हैै , म गरीबी पर क वताएं लख अमीर हो रही ं, मै गरीब पर क वताएं लख क व बन रही ं। गरीब सपल है , एक नमूना मा , सूरज क त पश, बा रश क मार, कोहरे के धुंध और ओलो क चोट सहने के लये बना महज़ एक सपल। गरीब ेरणा है , इनक ज रत के अभाव पर गव करता है ये समाज, कसी गरीब का एक साइ कल से १००० कलोमीटर का रा ा तय करना ेरणा देता है रजाई क तीन परत म लपटे युवा को, या पशमीना ओढ़, अंगीठी क आग तापते रटायड अ धकारी साहब को एक गरीब का संघष, उसक ज ोजहद कम करना कभी ल था ही नह वो एक नकली देवता, एक नह ा सै नक, एक भूखा रसोईया, एक ासा कुआं, एक मु म बकने वाली व ु बनकर अपने शौक क तरह ही मर जाता है । आकृ त तवारी तीय वष

हाँ, ये साल गुजर गया अब जाने कतने सपने टू टे , जाने कतने अपने छूटे । कतनी आशाएं मर गई कतने ाब ने दम तोड़ा। ससके कतने भूखे ब े, मासूम और मन के स े। कतनी ज़ गय ने न जाने, इन राह पर यूँ दम तोड़ा।

टू टी उ ीद का घेरा, अंधकार ने डाला डेरा। ससक उठी थी वसुंधरा भी, जब ज़ गी ने यूँ मुँह मोड़ा। हाँ ये साल गुजर गया अब, उ ीद ने डाला डेरा। आशाओं क फसल पक गई, रोशन हर एक राह संवर गई। वचला पा ेय थम वष

󰏌र󰍲े कुछ र े ह जो खास है कुछ अपने मेरे पास है !! कुछ र े ने खामोश कया बस अपन से ही आस है ... जो पहले मेरे ख़ास थे उ ने तोड़े व ास है !! कुछ ने खेला ज बात से उनको नह अहसास है ... कुछ हाथ से है छूट रहे कुछ धीरे - धीरे ठ रहे !! कुछ ने पहने मुखौटे ह, और अपन को ही लूट रहे ... अमृता कुमारी थम वष

󰎔ी का अ󰏘󰎒󰋇

धन

जग को जीवन देने वाली इस दु नया म नारी है हर कसौटी पर खड़ी वो अबला सब पर भारी है वो ना हारे गी कसी से, न कसी से हारी ह

क ा धन प रवार का,कर सदा स ान। पैर पूज क रए वदा, व ध का यही वधान।।

नारी के अ क जंग तो युग युग से जारी ह हर े म नर दखाकर उसने बाजी मारी है पु ष वाले सारे अ धकार क अ धकारी है फर भी आज इस देश म रहते उसके बला ारी है नारी के अ क जंग तो युग युग से जारी है ब त हो चुका अब न सहना आगे बढ़ने क अब बारी है कह न पाये तुझे इस दु नया म अबला है बेचारी है जग को जीवन देने वाली मौत भी तुझसे हारी ह नारी के अ क जंग तो युग युग से जारी ह े ा कुमारी त थम वष

आकां ा भ तीय वष

धन से सुख साधन बढ़,धन से उपजे रार। मूल सभी का धन रहा,धन से हो ापार।। कहलाए गुणवान वह ,धन है जसके पास। इसके बन गुणवान भी,लगे नह कुछ खास।। पास य द है ान धन, बढ सभी धन आप। वृ ान क क जए,रह सदा न ाप।। देह धन पास हो, लगे सुखद संसार। लग भोग भी वष भरे ,रोगी अ लाचार।। मेहनत बन फलती नह , माया न त मान। करे प र म लगे सुधा, खी सूखी जान।।

धार दो कनार के बीच बनाती अपना माग बहती अपने वेग से आव-न-ताव देख के अपनी राह चुनती खुद ही राह म रोड़े आए जतने भी बहती अपनी राह धूल म ी पी रसायन लेकर आगे जीवन जीवन है आगे मृ ु का भय नह अपनी धार म वेग- व ास है अपनी धार म केवल मं जल क

कह हाथ का मैल धन , ऋ ष मु न गुणवान। घटता बढ़ता धन सदा, कम थम भगवान।।

वषय वकार छलते य द,मन तृ ा का दास। ध नक लगे कंगाल सम, दूरी र खए खास।। धन वैभव अ ा लगे,जब हो देह नरोग। रोगी हो काया अगर, भाते नह ह भोग।। करे नह चाकरी,इस माया के फेर। भजे छूटे सभी, नह लगेगी देर।। दाम काम नह आय,जब याद क जए राम। वपदा टाल सभी क , वो मेरे घन ाम।। ास है ।

मन माया का दास है ,मन पर लगा लगाम। मन का मनका फेर ले, भज ले मन ी राम।। मंजू थम वष

सकारा󰋂क सोच एक अ ा दन बताने के लए बस एक सकरा क सोच क ज़ रत है , असल म ऐसी सोच तो इं सान का जीवन बना देती है । जहाँ इं सान का हौसला ढलना शु होता है , वहाँ सकारा कता उस श स क ह त बढ़ा देती है ।। सकारा कता, हर एक इं सान के लए उसके ज़ गी के हर मोड़ पर, सकारा क सोच का होना ब त ही ज़ री होता है । यह इं सान को जीवन म आगे बढ़ने के लए ो ा हत करती है । जब हमारे दमाग म हमेशा अ ी बात चलती ह, हमारा मन साफ़ होता है और अगर हम अ ी और सकारा क सोच रखते ह, उससे हमारा हर काम को करने म मन लगता है और फर उससे हमे ब त ख़ुशी भी मलती है । आपका वचार आपके जीवन को आकार देता है । वह आपके काय , नणय , त याओं, र और वहार को भा वत करते ह।

हर छोटी या बड़ी, आसान या ज टल सम ा का हल होता है । बस ज़ रत है तो एक सकारा क सोच, आ व ास, कड़ी मेहनत और ढ़ संक के साथ आगे बढ़ने क , और वह हमे उसका सही जवाब मल जाता है । सकरा क सोच के वकास के लए ज़ री है क आप नकरा क लोग से दूरी बनाएं और ऐसे लोग क संग त म रह जो हमेशा पॉ ज़ टव सोच रखते ह। सकारा क वचार से सम ाओं के बारे म नह ब उनके समाधान को खोजने म व ास रखता है । सोच हो सकारा क अगर तो इं सान ा कुछ कर जाता है , हर पल म खु शयाँ मनाता है और अपने ग़म को भूल जाता है ।

सकारा कता क शु आत आशा और व ास से होती है । जो अपने मन म नकारा क वचार रखते ह, वह अपने जीवन म कुछ नह कर पाते ह। नकारा क सोच जहाँ हमे नराशावा दता और नाकामी क ओर ले जाती है , वह सकारा क वचार हमे सकारा कता और सफलता क ओर अ सर करती है । अगर हम अपनी ज़ गी का एक ल बनाकर चलते ह, तो उससे दमाग को भटकने से बचाया जा सकता है । हमे कभी भी कसी भी त का सारा दोष खुद पर नह लेना चा हए। इसके लए कभी प र तयाँ भी दोषी हो सकती ह। आपक का ब लयत इसी म है क आप इन पर तय को खुद पर हावी न होने द और खुद म सकारा कता का संचार कर और हमेशा संयम रख। अब हम कह सकते ह क हालात चाहे कैसे भी ह , हम हमेशा सकारा क सोच ही रखनी चा हए, उससे समाधान हमेशा नकल जाता है । सकारा क सोच रखने से सभी मु ल राह भी खुल जाती ह। हम सफलता तभी ा कर सकते ह, जब हम अपनी नकारा क सोच को ागगे, और हर त म शां त बनाए रखगे। फर दे खये क एक सोच के बदलने से ही आपके जीवन म कतना ादा प रवतन आता है । हार और जीत आपक सोच पर नभर करती है , मान लो तो हार और अगर ठान लो तो जीत। समर ीत कौर तीय वष

󰇹󰏏त󰎚धा󰇢 एक दूसरे से आगे नकलने क चाहत म, दन का सुख रात का चैन खो दया। त धा क इस होड़ ने भाई को भाई से लड़ा दया। लोग.. चेहरे पर लये मु ान, सीने म काला दल रखा करते ह।

बखरता कारवां देख कसी का, मन ही मन मु ाया करते ह।। पीछे रह जाने के डर से, और का भी बुरा सोच जाया करते ह। तर पाने क लालच म, गरीब का हक़ मार जाया करते ह।। व क क त म... दो पल खुद को संवार लो। कैसे रहा जाता है एकजुट, ये जानवर से सीख लो।। म हमा ीय वष

वजूद एक औरत ने कहा "ऐ मद,जो तू इतराता है न अपनी इस फतरत पर" तेरी स ाई म ही ं तेरे कदम के साथ चलने वाली तेरी परछाई म ं अगर तेरा वजूद है न इस दु नया म तो इस बात क गवाही म ं कस ज बे पर तुझे गु र है तेरे मकान को घर बनाने वाली पसीजती काई भी म ं ा तबाह हो जाता अगर संसार म तेरा मेरा औहदा बराबर हो जाता तू मेहनत बन, म पसीना बनूँगी तुझे धूप लगगी, तो आँचल क छांव बनूँगी एक बार मुझे एक समझ के तो देख ख तो ा कायनात पलट दूंगी बाग बसा ले हजार पर उसम क लयां न ह गी जब म ही न रही, रं गी नयाँ कहाँ ह गी भूल मत मुझसे ही बसती है तेरी दु नया और चलता है तेरा जहान जो म न रही तो तू भी हो जाएगा बेजान। ो त चौधरी थम वष

हर हाल म󰎷 मं󰏑ज़ल पाना है हम गीत जीत के गाएंगे बाधा से आंख मलाएंगे जब तक न मं ज़ल हा सल हो ये सबसे कहते जाएंगे उठो, जागो, संघष करो जीवन मे बढ़ते जाना है । उठो, चलो, संघष करो हर हाल म मं ज़ल पाना है । अश नह , श ह बल मन से ह ढ़, चाहे तन दुबल परवाह नह आगे ा हो व ास यं का है स ल। बढ़ो, हटो न, धीरज तो धरो उ ीद क लौ- जलाना है । उठो, चलो , संघष करो हर हाल म मं ज़ल पाना है । चलकर गरना, गरकर उठना लहर - सा ही, बहते रहना रोके पवत, रोके तूफ़ान काँटो को भी सहते रहना। चलो, को न, तुम करते रहो जीवन मे जो कुछ ठाना है उठो, चलो , संघष करो हर हाल म मं ज़ल पाना है । आ ा दीपाली तृतीय वष

󰏑सल󰏑सला बदलते रा󰎒󰎽 का सल सला था मेरे इस रा े से, अभी भी कह गुम है मेरे रा े, फर भी ऐसा लगता है क यह मं जल ही थी मेरे लए,

दल कुछ और कहता था दमाग कुछ और फर भी चल पड़ी म एक नए रा े क ओर, ऐसे ही सोचने म उलझ-सी गई थी म, ले कन इस सनसनी हवाओं ने कुछ तो ख बदला है वह ा है पता नह उस बदलते ख क और चली गई कहां गई पता नह कुछ देर ठहर कर मने सोचा और अपने मन से कहा, सी ढ़यां उ मुबारक हो ज छत तक जाना है , मेरी मं जल कुछ और है , रा ा मुझे खुद बनाना है । उस बदलती ई हवाओं क ओर जाते जाते मेरी मं जल का रा ा नजर आया। दल क सुनो रा ा अपने आप दखता जाएगा, उस रा े क ओर स े मन से चलते ही जाओ चलते ही जाओ चलते ही जाओ। रोज़ी तीय वष

क󰍜नाएं एवं वा󰎒󰏎वकता जब जीवन म आपक ा हश बड़ी हो जाती है तो कह न कह आप क नाओं म ही उ पूरा करने का यास करने लगते हो। ऐसा ही कुछ आ था मेरी एक सहे ली के साथ जब उ ने वा वकताओं को क नाओं म ही पूरा करना ारं भ कर दया। मेरी एक सहे ली थी आ शका जसने अपने सपने को ही अपनी स ाई मान लया था। वह रात दन मेहनत तो करती थी पर उनक जतनी भी सफलताएं थी वह अब का नक होती जा रही थी दन रात वह रयाज़ म म रहती थी पर

जब उ अवसर मलता था तो वह उ अपने सपन म ही या तो जी लया करती थी या वही अपनी ु त दे देती थी ।उनका यह काफ लंबे समय तक चलता रहा कई बार उ लोग ने समझाया पर कसी को सपने से नकालना काफ खतरनाक हो सकता है और जब उ वा वकता पता चलती थी तो वह बीमार हो जाती थी और उसे बदा नह कर पाती थी। कसी ने ब त ह त करके उ बताया क वह जो जीवन जी रही है वह सोच का ही अ ा है और उ अब अपनी अस लयत को अपना लेना चा हए तो फर उनक तबीयत पर काफ असर पड़ने लगा पर उनका प रवार और हतैषी लोग थे साथ इस सब से उ बाहर नकालने म और अब वह ठीक हो रही थी साथ ही अपनी वा वकता को अपना रही थी और जो वह इन सब से लड़ ली तो उनके श थे क "क नाओं म आप खुश ही रहोगे वह भी कुछ समय के लए पर सब कुछ को अपना कर अगर आप क मयां भी मान लेते ह तो वा वकता म भी सुकून है ।" आभा सगर थम वष

नवी ख़बर म चा आळे क दुकान पर बैठया चा क चु मारदे-मारदे, अखबार पढण लगरया था। मेरी जड़ मै बेठया एक अनपढ़- सा बुजग पूछण लगया," रै बे ा सुणा कोई नवी खबर?" देश भर म अराजकता, द ी म म हलाएं असुर त, एक मं ी पर घपले का आरोप, एक नव वधू दहे ज क भट, एक खलाड़ी मैच फ ग म गर ार।" रै छोरै या नवी खबर सै? "अर मै सोचण लगया या तो रोज होवै। सच सै! या कोई नवी? मंजू थम वष

󰏎फ़󰍠 समी󰆶ा उरी द स जकल ाइक साल 2019 क कई राजनी तक फ म से पहली है । व कौशल और यामी गौतम अ भनीत फ इस साल क पहली बड़ी बॉलीवुड रलीज़ है । मूवी का नाम: उरी द स जकल ाइक का : व कौशल, यामी गौतम नदशक: आ द धर इन वष म, कई बॉलीवुड फ नमाताओं ने देशभ के माग को अपनाने और रा वाद से भा वत नाटक बनाने का फैसला कया है । देशभ दशक के दल क कंु जी है और यह सू काफ अ ा काम कर रहा है , और बॉ ऑ फस नंबर इसका माण ह। व कौशल, परे श रावल, यामी गौतम और क त कु ारी ारा अ भनीत रा वादी फ़ क नवीनतम फ़ उरी: द स जकल ाइक है । यह सतंबर 2016 म क ीर म सेना के बेस कप उरी म ए आतंक हमल के जवाब म भारतीय सेना ारा कए गए जवाबी स जकल ाइक पर आधा रत है । व एक सम पत सै नक, वहान क भू मका नभाता है , जो मशन म अ ी रणनी त और योजना के लए जाना जाता है । एक सफल मशन के बाद, वह सेना के जीवन से सेवा नवृ होना चाहता है , क उसक माँ को उसक ज़ रत है । हालाँ क, धानमं ी नर मोदी, जनक भू मका "र जत कपूर" ने नभाई थी, उ प व प से याद दलाया, "देश भी तो हमारी माँ है ।" 2019 के चुनाव से पहले देशभ और पदा था कभी-कभी पृ भू म संगीत क तुलना म अ धक मजबूती से द शत होती है । कहानी पूरी तरह अ ा शत नह है ; हम जानते ह क आतं कय के खलाफ स जकल ाइक के मशन को अंजाम देने के लए वहान को ा ध ा लगेगा।

दूसरा हाॅफ भारतीय सेना पर क त है जो आतंकवा दय के खलाफ हमले क योजना बना रही है । फ का लहजा एक ऐसी छलाँग मारता है जससे भारत खून-खराबे और हसा का सबक सखाने के लए तैयार हो जाता है । वहान च ाता है , "वे क ीर चाहते ह और हम उनका सर चाहते ह।" भारत और पा क ान के के अंतर प से ह। एक के लए, पृ भू म म हमेशा पा क ानी झंडा होता है , यह दखाने के लए क यह इ ामाबाद म हो रहा है । नदशक आ द धर ने पहले एक सा ा ार म कहा था क ' फ म पा क ान वरोधी कुछ भी नह था।' उरी: स जकल ाइक श से है क यह कस राजनी तक दल को जाता है और इसका कोई रह नह बनाता है । मोदी और रा ीय सुर ा सलाहकार अजीत डोभाल (रावल) ावहा रक प से हर म दखाई देते ह और हर बैठक का ह ा होते ह जसम स जकल ाइक पर चचा होती है । इस फ का समय इससे अ धक सही नह हो सकता था। उरी क संब ता को एक तरफ रखकर (जो अपने आप म एक काय है ), यह अ धकांश ह के लए एक अ ी फ है । पहली छमाही दूसरे क तुलना म अ धक मनोरं जक है । म ांतर के बाद, कथा के नयं ण को खोने के बदु पर नमाता खुद अ त-उ ा हत लग रहे ह। व ास करने यो और वा व म ा नह है के बीच क रे खा धुंधली हो जाती है । वा व म एक है जहां व ने "भारतीय सेना" च ाते ए एक आतंकवादी को एक-एक कर मारा! फर,बंदूक एक तरफ फक दी जाती ह और हम कुछ अ े पुराने बॉलीवुड घूंसे और कक देखने को मलते ह। 2018 म गो न ईयर वाले व कौशल ने 2019 क शु आत धमाकेदार तरीके से क । उनके अ भनय के बारे म कोई शकायत नह है , हालां क उन बदुओं पर आप व के अ भनय को उनक कारवाई से अ धक देखना चाहते ह। व अपना सव े करता है और फ को आगे बढ़ाने के लए कड़ी मेहनत करता है ।

क त कु ारी, ज ने फ़ पक के साथ काफ भाव डाला, व के हे लीकॉ र के पायलट के प म यहां थ है , जो सफ अपने श म, अपनी "देशभ " को सा बत करने के लए उ ुक है । यामी गौतम एक अ ा दशन देती ह, ले कन वह पृ भू म म ही काफ बार सुनाई देती ह। वष 2019 का पालन करने वाली कई राजनी तक फ म से पहली फ़ थी। जसने 2019 के चुनाव के माग को तय कया था।

है ा हश व पटल पर हदी का अलग मुकाम लख दूँ। जब चमकती है चांद बनकर , हम उस आसमान क बदी है , भाषा से बखरते ह ार क महक, हम वह हदी ह। आन, बान, शान हदी है हद के नवासी का आ स ान हदी है । जुबान -ए - ह हदी है , हमारा ार हदी है ,जुबान-ए-आम है पर इस देश का आधार हदी है ।

सौ ा पांडेय तीय वष

तम ा थम वष

मेेरे देश क󰎫 भाषा 󰏍ह󰋭ी है

जलवायु प󰏌रवत󰇢न

सतंबर 14 सन् उनचास, त ा का आयाम मला, तं ता के सं वधान म, हदी को स ान मला, राजभाषा बनी थी हदी, हद क आवाज बनी, जन गण मन के अधर पर, गीत बनी आ ाद बनी। चातक गाता गौरव गाथा, जननी का जयघोष आ, अं ेजी बंधन म लपटी, धरती को प रतोष आ। रस से ल है , अलंकार से सुस त-सी, सागर-सा ान समाया, सफर इसका भ ता से तृ भी। हद के जन-जन क अधर का आधार भी है , क वता म इसके ेमभाव परोपकार भी है । हदी भाषा नह भाव क अ भ है , यह मातृभू म पर मर मटने क श है । हदी भाषा नह भारत नगरी का ताज है , ाचीन काल से लेकर शखर पर आज है । सारे जहां म अपने हदी क अलग पहचान लख दूं,

ए. सी म म रहने वाला, धरा ताप न सहने वाला। ठ गई अब वसुंधरा जब, आतप से म जलने वाला।। सूखे उपवन, सूखी धरती, अब तृ ा से मरने वाला। ोबल वा मग के आतप से, हम शखर भी पघलने वाला।। ीन हाउस बढ़ाने वाला, मीथेन भी फैलाने वाला । जलती धरती, गगन है लो हत, सौर व करण से मरने वाला।। आक टक म हम य से, महासागर भी बढ़ने वाला। टू टगे के जब बाँध हमारे , डूब-डूब म मरने वाला । मने बफ पघलते देखा, मने जंगल जलते देखा। म नह अब सुधरने वाला, म नह ह समझने वाला।

आने वाली पीढ़ी नूतन, जब मेरी गाथा गाएगी। धर अ म बहने वाला, नक धरा को करने वाला। आओ मलकर धरा बचाएँ, व फ़लक पर मलकर गाएँ। अब ट नह ँ करने वाला, म जलवायु का ँ रखवाला।। वचला पांडेय थम वष

कोरोना समय म󰎷 आम जन के संघष󰇢 और चुनौ󰏏तयाँ कोरोना महामारी ने मनु ता के सामने एक वराट चुनौती उप त कर दी है । साथ ही उसे अपनी उपभो ावादी जीवन शैली पर सोचने पर मजबूर कर दया है । आधु नक युग म लोग मशीनरी के पीछे ऐसे भाग रहे थे, जैसे उ कोई अमृत मल गया हो ले कन कहते ह ना क पानी जब सर से ऊपर चढ़ जाता है तो एक ना एक दन अव व ोट होता है । मनु ने सोचा तकनीक से वह हर आपदा, हर सम ा से नजात पा सकता है , पर ु इस समय क कोरोना जैसी महामारी - वपदा ने लोग को घुटने टे कने के लए मजबूर कर दया । इस समय म लोग अपने अ क लड़ाई लड़ रहे ह। य द देखा जाए तो यह संकट क घड़ी सफ उस गरीब तबके को बेहाल कर रही ना क बंगलो और वला म रहने वाल को, जसे ना तो खाने क तकलीफ़ है , ना पहनने क । ले कन कोई जाकर उनसे पूछे जसने मील चलकर, कंध पर अपने ब का बोझ उठाकर भूख ास से तड़पते ए रा े तय कए। दल दहला देने वाले ऐसे उन दल को नह पघलाते जो चाह तो भूखे- ासे सड़क पर संघषरत लोग क मु ल को कुछ हद तक कम कर सकते ह।

ले कन वतमान प र म हम देख रहे ह क लोग केवल अपनी जजी वषा के बल पर ही संघष कर रहे ह। क व केदारनाथ सह जी क एक क वता "पानी से घरे ए लोग" म भी आम जन क इसी जजी वषा क बात करते ए वे उन संघषरत लोग का संघष लखते ह क पानी से घरे ए लोग एक दीया सलाई बचाते ह। दयासलाई का बचाना जीवन म ऊ ा को बचाना है । स ा ने ब तेरे लोग को इस वपदा म उ उनके हाल पर छोड़ दया है । लोग संघष कर रहे ह, कुछ लोग संघष करते ए दम तोड़ दे रहे ह। ब त दय वदारक प र है । इस लए हम ये जानते है क इ तहास से लेकर वतमान तक और भ व म भी ऐसी बीमारी, ऐसी आपदाएं मुंह बाए खड़ी थी, है और रहे गी ले कन हमारे सहयोग, संवेदनशीलता से उनक भरपाई क जा सकती है । समाज म बराबरी को न मत करना होगा। आ खर इस समय को देख कर शायद लोग को यह समझ जाना चा हए क जीवन न:सार है , इसका कोई मोल नह है l नफरत और घृणा के साथ जीना, धम जा त के लए आपस म लड़ना सब थ है । मनु को कम से कम अब यह सीख लेनी चा हए, उ अब कृ त का स ान करना होगा। ऋतुजा सह तीय वष

मेहनत : ल󰉏 और लक󰎫र जदगी भरी है अरमान से कुछ कर जाने के बहान से मनु नह है मोहताज ल का बस ल को साधने क देरी है क मं जल कसी और क नह इस लए जीत सफ तेरी है जीतना मुम कन है य द खुद पर व ास हो पूरे ल उ के होते ह

जनके दल म कोई आस हो हँ सगे लोग तेरी क मय पर पर याद रख क मयां उ म होती है जो मेहनत करते है बेकाम के लोग केवल दूसर को बदनाम करते ह मरने क इ ा कभी मत करो क जीवन का सबसे बड़ा स यही है बड़ी ही मु ल से मलती है जदगी इसे साथक बनाओ केवल जीवन जीने के लए नह सब के दल म जदा रहने के लए काम करो खुद को पहचानो इतनी-सी बात मानो मेहनत ही है क त मेहनत ही है तकदीर और मेहनत ही है तु ारी जीवन भर क लक र। ो त चौधरी थम वष

󰇹ेम कहानी हमने भी सोचा था न फसगे इस मोह त के जाल म बड़ी खराब चीज होती है यह पता चल गया था 15व साल म पर हम ा पता था हम भी फंस जाएंगे इसी जाल म ब त घबराहट ई थी जब पहली च ी मली थी हम लगा हम ार म क े ह पर नह मालूम था व भी अभी ब े ह ेम का मामला कुछ य बगड़ा क म ी ने सारे ेम प को पकड़ा खूब पटाई हम लगाई और डांट जाकर उ सुनाई पर ार का धागा न इतना कमजोर था दुबारा पटना हम मंजूर था पर इस बार न फंसने का इरादा था च ी को पढ़ते ही जलाना था ार का सल सला कुछ खास आगे न बढ़ा

क एक और बाधा आन पड़ा आ गई एक हसीना उनके जीवन म फंसाने उ मोह त के जाल म पर नह मालूम था उसे नह है कमजोर हम भी इस ार म नकाल दया उसे जीवन से पर अपना मामला भी कुछ तीन महीने तक बगड़ा ार हम दोन का गहरा था पर इस बार दोबारा मले तो समाज का पहरा था मां-बाप क इ त थी हम बचानी इस लए ख करनी चाही ये कहानी रह गए एक साल उनके बन पर वह होली का दन भी ा सुहाना था उस होली के रं ग को हम दोबारा मलाना था बंध तो गए दोबारा इस बंधन म पर नह मालूम था दोबारा बछड़ना ही है जीवन म, व व ालय म जो हमने दा खला पाया माता- पता ने एक ही बात सखाया अगर चाहते हो सफलता पानी छोड़ दो अपनी यह नादानी हमने भी उनक बात मानी और ख कर दी यह कहानी वे समझते ह हम बेवफा ह पर उ कौन बताए उनके ार को खोकर हम जदगी से ही खफ़ा है उ ीद है क दोबारा मलगे पूरी करने को अपनी कहानी ये तो सब जानते ह इतनी कमजोर नह थी ये दीवानी। नीता तीय वष

नारी

मेरी पहचान

नारी नाम मा एक श है ा जानते ह आप कतने पा का इसम दम है धरती है वो माँ है सर ती वो देवी है धन है तो ल ी पर जब अपने घर म नारी के स ान क बात आती है तो वह बोझ है उससे पूछे उसके दल म कतना बोझ है वह भी सोचती है क कभी क ना चावला बन म आसमान मे सैर लगाऊँ कभी ल ीबाई बन म अ ाचार का नाम मटाऊं कभी मैरी कॉम बन कर म अपने देश को जीत दलाऊं मदर टे रेसा बन कर म समाज क ाण म हाथ बटाऊं मौका देकर देखो मुझ को ह ु ान को ग बनाऊँ सारा संसार मुझसे बना फर भी मेरा मह नह घर म, समाज म, नारी को स ान दे वरना समाज को आग मे झ क दे जब होगा नारी का स ान तभी बनेगा देश महान नारी नाम मा एक श नह जस दन अथ जान गए इसका मतलब सारा जहां जान गए।

ना कमजोर ना ही अबला, स म ँ म, म ँ सबला, मत आंको अपनी नजर से पहचान तुम मेरी तभा गाग क वंशज कहलाती, म ं मै ी क संतान, म दुगा - सी, म ही ल ी, म ही सर ती का वरदान। नज सपन के पंख फैलाये छूने दो मुझको आकाश, तज भेद कर मुझको जाना रचना एक नया इ तहास। मुझको भी एक मौका दे दो, पूरी कर दो मेरी आस, ना ही ज़द ह ना ही चुनौती। यह है बस मेरा व ास। म स म ँ, सृजनशील ँ, म भी सब कुछ कर सकती ँ। बस एक बार करो मुझ पर व ास, म भी रच सकती ं इ तहास।

मु ान यादव थम वष

े ा कुमारी त थम वष

󰎌ूल को अं󰏏तम 󰏎वदाई ू ल म ब त से ही एक री त चली आ रही है क हमारे अनुज हम फेयरवेल पाट देते ह। तो आज वह दन आ ही गया जसम हम अपने ू ल को अं तम वदाई देनी थी। मने अपनी ारं भक श ा एवं उ र क श ा इसी व ालय से क है । मुझे आज भी याद है मेरा वो ू ल का पहला दन जब म ू ल न जाने के लए रोई थी और आज एक दन है जब म ू ल से न जाने के लए रो रही ं।

अपने ू ल से मुझे ब त कुछ सीखने को मला जैसे हम हमेशा हमारे अ ापक का आदर करना चा हए। मेरी अ ापक ने हमेशा मेरा साथ दया चाहे क ठन समय हो या अ ा समय। उ ने हमेशा मेरा मागदशन कया मुझे सही माग दखाया और उसी माग पर चलने क ेरणा दी। पर आज ब त दुखी होकर यह कहना पड़ रहा है क आज हम अपने व ालय को हमेशा-हमेशा के लए अं तम वदाई देनी पड़ रही है । हम ारवहीँ क ा के ब ने फेयरवेल पाट दी थी। उन ब ने हम ेशल फ ल करवाने के लए ब त सारे इं तजाम कए थे जैसे उ ने पूरा मैदान सजाया था। हमारे लए कु सयां रखी ई थी और एक टे बल था जहां पर सपल मैडम बैठी ई थी। हमारी पाट सुबह दस बजे शु हो गई थी। सबसे पहले ारहवी क ा के ब ने गीत गाकर हमारा मनोरं जन कया। उसके बाद एक ट थी जसम ब ने ू ल के अलग-अलग जगह म क गई हमारी म ी को दशाया जैसे वह कटीन के समोसे और ाउं ड म घूमना,जैसे वह टीचर का पढ़ाना और हमारा ास के बीच म खाना- खाना आ द। उसके बाद हम एक मूवी दखाई गई जसम हमारे बचपन से लेकर बारहव क ा तक क सभी फोटोस थी उन फोटोस को देखकर सब भावुक होकर रोने लगे। फर हमारी अ ापक ने हम परी ा म सफल होने के लये हम जानकारी दी। हमारी जू नयस ने हम पेन दया और साथ म बधाई भी। हमारी सपल मम ने जीवन म कैसे सफल हो सकते ह तथा अ े इं सान कैसे बने यह सीख दी फर हमने अपने अ ापक से ब त दुखी होकर वदाई ली। पूरे वातावरण म शां त छा गई। व ालय क जदगी सबसे अ ी होती है और वहां बताए ए ल े यादगार होते ह। काश, हम एक बार फर अपनी व ालय क जदगी को जी सकते।

जब सपना मेरा है तो म󰎺 ही पूरा क󰏆ंगी न

म लका थम वष

अपन क पीठ पर चढ़कर आगे नह जाउं गी, उनको अपने फायदे क सीढ़ी नह बनाऊंगी, ज़ब सपना मेरा है तो म ही पूरा क ं गी।

जो ाब देखे ह बदलाव के, उसे ऐसे नह जाने दूंगी अभी ना सही, कुछ समय बाद ही व ज र बदलूँगी अभी ना नापो मेरी छलांग को, अभी तो मने शु आत क है तुमने देखा ही ा है संघष ा होता है , मेरे पीछे पूरी कहानी पड़ी है चार बात जो करते हो पीठ पीछे , ा तुमने कभी मेरा करदार जया है ा ा हश को बेच के, कंधे पर अपने बोझ लया है पका-पकाया खाने क आदत है तुमको, ा कभी खुद के लए खुद से कुछ कया है हाँ मतलबी समझो बेशक़ मुझे, क दूसर से ादा खुद क फ करती ँ ाथ नह कह सकते तुम इसे मेरा, इसे ा भमान कहा जाता है बार-बार मले ए धोखे और फरे ब से ही, इं सान इसे कमाता है अपन से भरोसा उठ गया है , पर इ त उनके लए अब भी दल म है सं ार दए है मेरे माँ-बाप ने, तव जो उ भी देना पूरी मह फ़ल म है

सौ ा पा ेय तीय वष

नई शु󰏅आत रे खा अपनी आँख धीरे से खोलती है । उसे कुछ समझ नह आता है क वह कहाँ है । अपने चार ओर उसे सफ़ेद दीवार दखाई देती ह। आस-पास काफ़ गंभीर माहौल दखाई दे रहा है । सभी के चेहरे उदास, परे शान दख रहे ह। कुछ लोग भाग-भाग कर ऑ ीजन सलडर ला रहे ह तो कुछ लोग अ ताल म भत होने के लए लाइन म लगे ए ह। तभी उसे एक आवाज़ सुनाई देती है । आवाज़ कुछ जानी पहचानी-सी लगी। रे खा! रे खा! तु होश आ गया? तुम ठीक हो? अभी कैसा महसूस हो रहा है ? रे खा च क उठी! यह ा? उसके सामने उसक सास मीरा खड़ी है । उसे काफ़ अचंभा आ। जस सास से वह सीधी मुँह बात भी नह करती थी और उसे हमेशा यह लगता था क सास कभी मां नह बन सकती, वही सास उसक देखभाल के लए आज अ ताल आयी ई है । उसे ान म आया क वह दो-चार दन से बुखार म थी। उसका ऑ ीजन लेवल कम होते जा रहा था और उसे को वड अ ताल म भत कराया गया था। उसने देखा क उसक सास मीरा, डॉ र से कुछ बात कर रही थी। रे खा मन ही मन डरने लगी क उसे अपने घरवाल से दूर अ ताल म अकेले रहना पड़ेगा। तभी मीरा रे खा के सर पर हाथ रखते ए कहती है , "चलो! म तु लेने आयी ँ। हम तु ारा घर पर इलाज़ करवाएंगे। होम आइसोलेशन म रखगे, अपने साथ। मने डॉ र से सब बात समझ ली ह। तुम ब ु ल सही हो जाओगी। चता मत करो, म ँ न!" रे खा क मानो मन क मुराद पूरी हो गयी। वह अ ताल म अवसाद से घर रही थी। उसे यहाँ ऐसा लग रहा था जैसे मौत उसके करीब है । उसे आ य आ क जस सास से उसक ब ु ल नह बनती थी वह उसके मन क बात कैसे समझ गयी? अ ताल क फॉम लटी पूरी कर दोन घर क ओर चल पड़ते ह।

रा े भर रे खा यह सोचती रही क मने सास को कतना गलत समझा। आज जहाँ लोग एक दूसरे से दूर भाग रहे ह वह मीरा अपनी जान क परवाह कये बना रे खा के लए एक पांव पर खड़ी थी और उसे अपने साथ घर ले जा रही थी। यह सब सोचते ए उसका दल भर आता है और आँख से आंसू छलक पड़ते ह। उसका सर ा से झुक जाता है और वह जीवन क नई शु आत करने क ठान लेती है । आ ा दीपाली तृतीय वष

व󰈸 क󰎫 आवाज़ व रहते व क कदर करो बुरा व तो जादूगर है जो एक ही पल म सभी चाहने वाल के चेहरे से नकाब हटा देता है । इतनी ज ी हार मत मानो जदगी से। आज व बुरा है तो कल अ ा होगा, लोग ब त अ े होते ह, अगर हमारा व अ ा होता है । जनाब व व क बात होती है , कोई कह जाता है तो कोई सह जाता है । शायद यह व हमसे कोई चाल चल गया, र ा वफा का और ही रं ग म ढल गया, अ क चांदनी से थी बेहतर वह धूप ही, चलो उठो और उसी मोड़ से शु करो फर से जदगी। हम हर व यह एहसास दामन गर रहता है , पड़े ह ढे र सारे काम और मोहलत जरा-सी है । हाथ छूटे भी तो र े नह छूटा करते, समय क साख से ल े नह टू टा करते। हे मेरे अ े व तू भी जरा धीरे - धीरे चल, हमने बुरे व को भी ब त धीरे -धीरे गुजरते देखा है । मेरी भी कहानी लखेगा कोई एक दन, व ने मुझे ा से ा बना दया है ।

पुरानी कलम को एक नया मोड़ दया है , मने तुम पर लखना छोड़ दया है । व ,व ,व व हम ब त कुछ देता भी है और, और हमसे ब त कुछ छीन भी लेता है । यह व ही तो है , यह व ही तो है । रोज़ी तीय वष

󰎢यं पर 󰏎व󰍷ास " व ास" खुद पर रखो तो ताकत बन जाता है दूसर पर रखो तो कमज़ोरी बन जाता है !! कहा जाता है क मन ही मनु के मो का ार है । कभी आपने यं पर व ास करके देखा है ? एक मन ही है , जो चाहे , वो कर सकता है । हमारा मन ही हमसे अ े काम भी करवाता है और बुरे भी। हमारा हर एक वचार, हर याकलाप हमारे मन से ही जुड़ा होता है । एक जस तरफ भी अपना ान आक षत कर ले, फर वे उसे पाने के लए कुछ भी कर सकता है । बात यह नह क हमेशा सफलता ही ा हो, पर ु अगर को शश ही न क जाये, या खुद पर व ास करने से पहले ही नकारा क ाल को सोच ल, तो ज़ गी म हम कभी भी आगे नह बढ़ पाएँगे। बस एक बात का ान रहे - यं पर भरोसा हो क हाँ, म यह काय सफलतापूवक कर सकता/सकती ँ। अपने आप पर व ास करना एक ब त ही बड़ी बात है । एक बात तो स है क जसने अपने मन को जीत लया, उसने पूरे संसार को ही जीत लया। मन क बात आए तो यं ही खुद पर व ास क बात आ जाती है । उदाहरण- जैसे महा ा गाँधी को खुद पर भरोसा था, तभी वह अं ेज़ को भारत से नकालने म सफलता ा कर पाए।

हदी के भ काल क मीराबाई को भी अपने यतम कृ पर पूण व ास था, इसी लए उ ने कसी क भी परवाह नह क , सफ कृ का गुणगान कया और अंत म मो को ा ई। ऐसी बात याद रखने से, आ व ास बढ़ता है । कसी दूसरे पर वशवास करने के बजाय अगर खुद को मह दया जाये, तो दु नया क कोई भी श हमे अपने ल को पूरा करने से नह रोक सकती। यं पर व ास... सबसे बड़ा अ , और सबसे बड़ी ढाल, दोन है । जतनी तभा हमारे खुद के अंदर है , जतनी गहराई से हम खुद चीज़ को सोच सकते ह और जतना हम खुद के लए कर सकते ह, उतना हमारे लए कोई और नह कर सकता है । अपने अंदर के वचार को बस अ े से समझने क आदत डालनी है । अगर एक बार भी हमने खुद क सुन ली, तो हमारा भ व उ वल हो जाएगा। ये थोड़ा मु ल ज़ र है , क आजकल क दु नया थोड़ी अलग है , सब चाहते ह क हम उनक सुने और फर माने भी! ले कन एक बात का ाल रखना, सुनने म कोई बुराई नह है , पर ु उस बात को उनके हसाब से मानना, ये भी ज़ री नही है , इस लए सुनो सब क , ले कन करो अपने मन क । यं पर व ास ही सफलता का पैमाना है , वह हमारा भ व बदल सकता है , हमे एक नयी ज़ गी दान कर सकता है । खुद पर भरोसा करना शु करो, यह हमे लाख -करोड़ लोग से आगे लेकर जा सकता है । तुम जहाँ हो, वहाँ से शु करो। जो कुछ तु ारे पास है , उसका उपयोग करो। तुम जो कर सकते हो, करो!! समर ीत कौर तीय वष

हर 󰏎कसी के बस क󰎫 बात नह󰎱 आज एहसास आ है , सारी जदगी माँ-बाप क इ ज़त कर पाना, हर कसी के बस क बात नह , इसम दम नकल जाता है अ े -अ का, ये इतना भी आसान नह ।। जब डेढ़ फु टया आ करते थे, खुद से एक क़दम रख पाये नह , उं गली पकड़ कर सखाया था कसी बाप ने, वरना आज चल पाते इतनी औकात नह , सारी जदगी माँ-बाप क इ ज़त कर पाना, हर कसी के बस क बात नह ।। डेढ़ फु टया से तीन का आ, फरमाइश हज़ार गना दी, ये चा हये वो चा हये, ये नह वो नह , सारा बाज़ार ख़रीद के रख दया उस बाप ने, अब कोई ा हश बाक़ नह , सारी जदगी माँ-बाप क इ ज़त कर पाना, हर कसी के बस क बात नह ।। सं ार तो ब त दये गए थे, समय-समय पर, हर मोड़ पर, सं ार देने म कोई कमी अब बकाया नह , ब त मीठे फल मलगे बुढ़ापे म सोचा था उस बाप ने, पर आगे ा होगा ये तो कसी ने जाना नह , सारी जदगी माँ-बाप क इ ज़त कर पाना, हर कसी के बस क बात नह ।। जसने बोलना सखाया, उसके सामने बोलना सीख लया है , कहते ह, आपको तो कोई ान ही नह , मुँह चुप करा के, अपनी बात से उसी बचपन के बाप का, माँ से कहते तुम बीच म कुछ बोलो नह , सारी जदगी माँ-बाप क इ ज़त कर पाना, हर कसी के बस क बात नह ।।

बस यही दन तो रह गया था, शायद अब सुनने के लए, आप लोग ने कया ही ा, कुछ तो कया नह , जतना कया है , ये तो फ़ज था आपका, बाप होने के नाते, इसम तो कोई बड़ी बात नह , सारी जदगी माँ-बाप क इ ज़त कर पाना, हर कसी के बस क बात नह ।। चलो मान लया, क ये फ़ज था माँ-बाप का सब करते ह, पर माता- पता से ऐसे बात करना, तु ारा भी तो हक नह , और पाल-पोष कर इतना बड़ा करना, आ नभर बनाना, ये कोई हँ सी-खेल तो नह , सारी जदगी माँ-बाप क इ ज़त कर पाना, हर कसी के बस क बात नह ।। म हमा तीय वष

सर󰎢ती माँ भ

दे माँ, श दे माँ ान काश से, फु त संचार दे माँ ऋ दे माँ, स दे माँ व ा हीन को व ा दे माँ बु हीन को बु दे माँ नए- नए ान का भ ार दे माँ व ा का रस मन म घाेलो बड़े ार से जय जय बोलो भ दे माँ, श दे माँ बाएं कर म वीणा है माँ दाएं कर म माला है माँ मोह अ ान और त मर माँ जग से नाश करो माँ हं स सवारी है माँ मुकुट म ण सोहे है माँ भ दे माँ, श दे माँ कु ता रावत थम वष

कोरोना सुनो - सुनो एक अनोखी कहानी, देश म आई कोरोना महामारी, चीन से ज ी है , ये बीमारी, इसके पीछे जनता ने अपनी न द है हारी। 21 माच को आ था, देश म थम लॉकडाउन , ू ल, कॉलेज सब बंद ए, बंद ए शहर और टाउन । सड़क पर लग गई वाहन क आवाजाही पर रोक, मॉल, सनेमा हॉल, ऑ फस, मं दर सब पर लग गए ह लॉक। एक बीता, दो बीते, बीत गए महीने चार, ले कन इस बीमारी के बढ़ते ही गए आसार। जदगी क-सी गई, बंद हो गए घर के ार, ारटाइन हो गए सब, संग लया अपना प रवार । ब त वष बाद यह अनोखा समय था आया, सबने अपने प रवार संग खूब समय बताया। जदगी ने अपना नया ख है लया, मा और सै नटाइज़र का सबने सहारा था लया। पी ड़तो के साथ मृतक क सं ा बढ़ती गई, इसक वै ीन बनाने के लए नई-नई खोजे क गई नुकसान हो गया ब त अ धक इसका भी है अफसोस, ापारी सब लूट गए, इसी लए मना रहे ह रोष। पढ़ाई के लए नए वचार ुत कए गए, ऑनलाइन क ा के दौर शु फर हो गए। बदल गया सब कुछ,अब पहले जैसा कुछ नही, ऐसी पढ़ाई तो पहले कभी नह ई । जनता के मन म बड़ा खौफ़ है महामारी का, फर भी डट कर सामना मलकर कया, सबने इस बीमारी का। पु लस, डॉ स सबने अपना खाना-पीना छोड़ दया, जुट गई जन सेवा म, घर ार से मुंह मोड़ लया। एक ओर अ ी खबर दहे ज था क गई, पांच बरा तय संग बेटी पराई हो गई। कज म दबने से बचे उस लड़क के मां-बाप, चलता रहे ये कानून आगे तक, सबका है बस यही ाब । महं गाई भी ब त हो गई , बढ़ गया हर व ु का दाम, गरीब लोग को लूटना ही तो ह सा कार का काम।

सारी व ा बदल गई, देश म आ ब त बदलाव , सोचते ह खूब खेला 2020 ने अपना दाव। एक दन खोने से डरते, इसने नगला पूरा साल , बथडे इसका आ गया, पर ख नह आ कोरोना काल। दुआ यही भगवान से क सब कुछ पहले जैसा हो जाए, कोरोना नामक महामारी क ज ही वै ीन बन जाए। ू ड स क पढ़ाई क शु आत फर से अ ी हो जाए, कोरोना के कारण कोई श ा से वं चत न रह पाए, एक साल बीत गया अब ख करो यह अ ाचार, बंद-बंद बस ब त हो चुका, खोल दो बस अब सब बाजार। सबके बथडे खा गई, खा गई सारे ोहार, र ाबंधन, ज ा मी, बीत गए सब तीज ोहार। अब तो सबकुछ धीरे -धीरे खुलने क शु आत ई, होली को मनाते-मनाते देखो दूसरी होली आ गयी। सोचते ह धीरे -धीरे सब कुछ पहले जैसा हो जाए , ‘ता नया’ क तो बस यही ाईश कोई और बला अब हम पर ना आए। ता नया दलाल तीय वष

󰏑ज़󰋭गी ज़दगी एक ऐसी अनमोल र है जसे पाकर हम एक नए हौसले क ओर चल पड़ते ह। एक अजीब-सी कशमकश से गुजर रही होती है यह ज़दगी, ज़दगी म कई बदलाव आते ह, कोई

इसे अ ी तरह से जीते ह तो कोई इसे बोझ समझते ह। कसी क जदगी म दुख होता है , तो कसी क जदगी म सुख का सफर है , हौसला इसक पहचान है । रा े पर तो सभी चलते ह जो रा े बनाए वही इं सान है ।अपन से दूर गैर को अपनाने म उलझी है यह ज़दगी, अपने ज बात से दूर भागने पर मजबूर है यह ज़दगी, कह जद पूरी, कह ज रत भी अधूरी, कह सुगंध भी नह , कह पूरा जीवन क ूरी, यह ज़दगी श भी ा चीज़ है , महके तो लगाव और बहके तो घाव। ज़दगी कसी क मोहताज नह होती, सफ सांस का नाम ज़दगी नह होता इस लए हर सांस लेने वाला ज़दा नह होता, जो जदगी क कशमकश समझ गया वह खामोश हो गया। नादान ह वह लोग जो बना बात बहस करते ह, सब कुछ मल जाता है ज़दगी म तो तम ा कसक करते ह। अधूरी ा हश ही तो जीने का मज़ा देती ह बुरा व पूछ कर नह आता है , ज़दगी म बदल जाओ व के साथ या फर व बदलना सीखो, मजबू रय को मत कोसो हर हाल म चलना सीखो। जदगी इतना भी दद नह देती क तुम बखर जाओ, ज़दगी इतना भी गम नह देती क तुम खुश ना रहो, ज़दगी इतने भी आँसू नह देती क तुम हं सना भूल जाओ, ज़दगी इतना भी इ हान नह लेती क तुम हार के जीना भूल जाओ, यह ज़दगी है यार इसे रोकर नह हं सकर जीना सीखो। ज़दगी तुमसे कुछ देर के लए नाराज होती है इसका मतलब यह नह क तुम ज़दगी से नाराज हो जाओ। मु ु राकर चलना हमने व से सीखा है , ज़दगी जीने का बस यही तरीका है अगर चाहते हो कुछ बड़ा करना तो अपनी सोच बुलंद रखना क कमज़ोर सोच इं सान को गराती है , उसके इराद को और कमज़ोर बनाती है । मायने ज़दगी के बदल गए ह, जदगी एक कहानी क तरह है जसम कई करदार होते ह जसे बार-बार सुनाया गया है । ज़दगी बस ार क मोहताज होती है , कई लोग हं स लेते ह लोग को दखाने के लए और कुछ लोग तो ज़दगी को दद क कताब बना लेते ह।

मुझे ज़दगी का इतना तजुबा तो नह पर सुना है सादगी म लोग जीने नह देते। बदल जाती है ज़दगी क हक कत जब लोग मु ु रा कर कहते ह तुम ब त ारे हो इस लए कह दो हर वह बात जो ज़ री है कहना क कभी-कभी ज़दगी भी बेव पूरी हो जाती है । हमारी ज़दगी क कहानी कुछ ऐसी होती है , जसम हीरो भी हम और वलन भी हम ही होते ह।। रोज़ी तीय वष

अब याद आता है अब याद आता है , उसका मु ु राना, उसका बात-बात पर मुझे परे शान करना अब याद आता है । बात- बात पर बात करने का बहाना ढूँढ़ना अब याद आता है । कभी मेरी गलती पर तो कभी खुद क गलती पर भी उसका मुझे मार देना, अब याद आता है । यूं तो मुझे भी ादा गु ा आता है पर बेवजह हँ सते ए उससे मार खा लेना अब याद आता है । कभी उसका मुझे मनाना तो कभी मेरा उसे मनाना अब याद आता है । अब तो व बदल गया पर अब भी वो वैसे ही याद आता है और उसका मु ु राना अब भी याद आता है । अमृता कुमारी थम वष

लॉकडाउन और तुम माँ

सै󰏑नक

माँ, न ी धड़कन भी मेरी गूंजी थी तेरे भीतर, याद से वर तेरी होकर बता फर म जाऊं कहां।

फर से कुछ सै नक बीजापुर म ए ल लुहान ौछावर ए भारत मां पर वीर के ाण फर से कुछ माँगे सुनी हो गई फर से कुछ बचपन पी क लयां मुरझा गई फर से मां-बाप के बुढ़ापे क छड़ी छीन गई फर से कुछ घर के आँगन म स ाटा छा गया ना जाने सेना के जीवन म कैसा अंधेरा आ गया अब सब खामोश है दुख ही दुख चार और है गांव म ना कोई शोर है सफ अब खामोशी का ही दौर है जन सपोल को दूध पलाया हमने वह हम ही आज डसने लगे ह शम आती है ऐसे भारतीय पर जो भारतीय सेना के ही दु न बने ह हर खून के कतरे का इं तकाम लया जाएगा ान रहे , ओ वीर हर जुबां पर तेरा नाम लया जाएगा उन 22 जवान को शहीद कर के तू गुमान ना कर ए न ली जरा भी, हर एक जवान के बदले तुम न लय को मरना पड़ेगा ज ही नतम क ं म उनके लए जो अपना ल बहा गए ा नसीब है उनका दो ाण गवां कर खुद को वीर अमर जवान कहला गए।

याद तु ारी अब ब त आ रही है , या शायद ार तु ारा अब समझ आ रहा है । फ हो रही है मुझे या बेचैनी तुमसे मलने क , पता नही पर ये क कश मुझे ब त सता रही है । म समटना चाहती ँ आकर तु ारी बाह म, सच मे माँ ये अकेलापन अब डरा ब त रहा है । नह चा हए मुझे जो मांगा आजतक तुमसे, बस एक मुलाकत क टीस मुझे तड़पा रही है । दन तो गुज़र ही रहे है माँ, पर पता नही ये समय सहमा रहा है । दन भर मु ु राने वाली म, रोती ँ इन रातो म, आशाएं मेरी माँ इन आँसुओ मे बह जाया करती है । इतना व तुमसे दूर बताया नही कभी, और अब तो माँ ये व और भी ख चता जा रहा है । लाड़ क बेटी म, खुश ं यहां भी, और तुमसे मलने क चाहत मेरा जीवन महकती जा रही है । याद आते है माँ श तु ारे ,"बस कुछ दन और", बस इ ी श ो से म अपनी ह त बांधे जा रही ँ। ऋ षता रावत तीय वष

आभा सगर थम वष

󰎔ी का अ󰏘󰎒󰋇 ी ही सही इ ान ँ म। दु नया क आधी आबादी क पहचान ं म। पर रखा जाता है मुझे, मेरे अ धकार से वं चत। अपनी ही पहचान के लए लेना पड़ता है भाई, पता, प त का नाम।

सखाया जाता है , रा े म चलते व सर झुकाकर चलना। गरते दुप ो को स ावना। शाम होते ही ज ी लौट आना। कोई कुछ बोले चुप-चाप सुनना । हर पल लड़क होने का अपराध महसूस करती ँ म। ऐसे हालत क मार हर रोज सहती ँ म। ज लेते ही 'परायी' उपा ध से नवाजा गया। 'तुम लड़क हो' भेदभाव होने पर 'तक मत करना' ये समझाया गया। र क के बहाने भ क का शकार बनाया गया। घर क दहलीज पार मत करना 'लोग ा कहगे' यह कहकर एक आदश ी बनाया गया। न जाने ऐसे कतने बनावटी मुखौटे को लगाती ं म। इन जंजीर म जकड़कर खुद को बचाती ँ म। ीत तृतीय वष

हर पल आता है हर पल जाता है दो , हम सभी के जीवन म कभी ना कभी ऐसा पल ज़ र आता है , जब हम काफ दुख भरे समय से गुजर रहे होते ह। कभी कसी से बछड़ने का दुख, कभी कसी से कुछ हारने का दुख, कभी कसी क याद का दुख, कुछ ना कुछ दुख हम हमेशा झेलते रहते ह। कई बार तो हम परे शान भी हो जाते ह और सोच म पड़ जाते ह क आ खर सारे दुख हम ही मलते ह। ले कन ा आप जानते ह क दु नया म कोई भी इं सान ऐसा नह है जसके पास कोई दुख ना हो। यह अलग बात है क कुछ लोग अपने दुख को लेकर सोच म पड़ जाते ह और खुद को और दुखी कर लेते ह। वह दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी होते ह जो क दुख से लड़ना जानते ह, और हर सम ा और परे शानी का रा ा खोज नकालते ह। यह लोग अपने एक ही दुख को लेकर नह बैठते ब उससे लड़ने का और दूर करने का यास करते ह। हम भी इ लोग जैसे

हम भी इ लोग जैसे बनने का यास करना चा हए और अपनी परे शा नय को दूर करने का को शश करनी चा हए, ना क बैठकर उसका शोक मनाना चा हए।। इन सबसे हटकर कभी-कभी हम कसी क याद म या कसी के बछड़ने के गम से काफ उदास हो जाते ह। ऐसे समय म हम अपने दल क बात और तकलीफ को कसी के सामने जा हर भी नह कर पाते ह। जब हम अपने गम को कसी के साथ सांझा नह करते ह, तो उससे हमारा दुख और बढ़ता है और हम ादा तकलीफ का सामना करना पड़ता है इस लए कहा गया है क दुख बांटने से कम होता है और खु शयाँ बांटने से बढ़ती ह।। रोज़ी तीय वष।

होली बुरे इराद वाली हो लका को मौत के घाट उतारा है , तब जाकर यह होली का नराला ौहार आया है । गोकुल के एक ाल ने राधा को रं ग लगाया है , तब जाकर यह रं ग भरा ौहार आया है । राम गुरमीत रहीम क टोली, चली मटाने सारे भेद, लाल पीला नीला गुलाबी, चले लगाने सबको रं ग। खलाएं गुं जया ल ू बफ , ना कसी से बैर है , बस एक ही नारा इनका, होली है भाई होली है ।

को भी ये गले लगाएं, मारे पचकारी और कह, होली है भाई होली है , बुरा ना मानो होली है । मुनीबा थम वष

पु󰎒क समी󰆶ा पु क:-डरी ई लड़क लेखक:- ान काश ववेक काशन :-भारतीय ानपीठ, 18 इ ी ूशनल ए रया, लोदी रोड, नई द ी मू :-300 पए इस उप ास क कथा दु म से पी ड़त एक युवती क ‘साइक ’, अवसाद, ख लश, ोभ, भय, एकांत और असुर ा क भावना से घरी ई है । ान काश ववेक ने इस उप ास के मा म से समाज के सामने एक ऐसे प को उ ा टत कया है , जो सामा त: समाज म कम ही नजर आता है । ान काश ववेक चुपचाप रह कर रचना करते रहने वाले संजीदा लेखक ह। इस उप ास के मु पा - राजन और नं दनी के मा म से एक ऐसे लोक का नमाण करते ह, जहां खामोशी है , सहानुभू त है , ेम है । ेम क ीकायता क चाहत है पर ेम को करने का साहस शायद नह है । उप ासकार ने मानवीयता क तमाम तह को खोलने का यास कया है । जहां न होते ए भी एक ेम व मान है और अपनी पराका ा को पाने को आतुर भी। बला ार जैसी घटना से जूझ रही ना यका के जीवन जीने क जजी वषा और नायक क सकारा क सोच इस उप ास को व श बनाती है । पछले कुछ साल म जस तरह ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ी ह और उसम एक लड़क के लए जीना दूभर होता गया है , उसम यह उप ास उ ीद के कुछ सू जोड़ता है । वचला पांडेय थम वष

󰏎व󰍷 󰏍ह󰎭दी 󰏍दवस नज भाषा उ त अहै , सब उ त को मूल। बन नज भाषा ान के, मटत न हय को सूल।। ~ भारतदु ह र ं व हदी दवस हदी क महानता के चार सार का अवसर है । हदी अखबार क वेबसाइ स ने करोड़ नए हदी पाठक को अपने साथ जोड़ कर हदी को और समृ बनाने म मह पूण भू मका नभाई है । इं टरनेट पर हदी के बढ़ते चलन से माना जा रहा है क आने वाले साल म हदी म इं टरनेट उपयोग करने वाल क सं ा अं ेजी म इसका उपयोग करने वाल से ादा हो जाएगी। हदी के चार- सार और वै क ीकायता का ही प रणाम है क आज हदी अपनी तमाम त ं य को पीछे छोड़ते ए लोक यता का आसमान छू रही है । आज दु नया के 176 व व ालय म हदी वषय के प म पढ़ाई जाती है । यह इसक लोक यता का ही प रणाम है । व भर म हदी क बढ़ती ीकायता का ही असर है क वष 2017 म 'ऑ फोड ड नरी' म भी पहली बार 'अ ा', 'बड़ा दन' और 'सूय नम ार' जैसे हदी श को स लत कया गया। हदी श कोश म लगातार वृ हो रही है तकनीक प से हदी को और ादा उ त, समृ तथा आसान बनाने के लए अब कई सॉ वेयर भी हदी म बन रहे ह। गुलामी के दन म भारत को एक सू म परोने का काम भी हदी ने ही कया था। हदी ऐसी भाषा है जो ेक भारतीय को वै क र पर स ान दलाती है और इसका उदाहरण यं हमारे देश के बड़े-बड़े राजनेता है । दी ा ीवा व तीय वष

थारे 󰏎बन थारे बना कोनी लागे जया थे घरा आवो परदेसी बाट देखू म थारी पया थे घरा आवो परदेसी छोड़ खे थे ाने चला गया परदेस नै बाट देखू म थाहरी पया थे घारा आवो परदेसी थाने लख लख भेजू प यां थे घारा आवो परदेसी बा ू है बीमार थारहरी मा रो बूरो हाल रै तावली-सी आके ढोला घर नै संभाल रै खने आगयो है नांदड़ी रो बहया थे घरा आवो परदेसी बाट देखू म थाहरी पया थे घरा आवो परदेसी सहे कोनी जावे ारे खाने या जुदाई रे कोनी चा हए ाने पया फंधारी कमाई रे रोऊ हवडे से फोटु लगा थे घरा आवो परदेसी छोड़ कै थे ने चला गया परदेस ने बाट थाहरी जो ढोला म थाहरे देश म थे घरा आवो परदेसी आरती थम वष

पृ󰋎ी मेरी गोद म पले जग सारा, हर ाणी क जान ँ म। समझूँ भेद का म ना इशारा, सबके लए समान ँ म।

भरती अनाज से घर म तु ारा, सम ा का समाधान ँ म। धरती माँ जसने भी पुकारा, म उसके लए महान ँ म। कभी म चंचल बहती धारा, कभी सूखा रे ग ान ँ म। हर कसान का बनूँ सहारा, खेत ँ और ख लहान ँ म। जसको हर मटाने वाला हारा, वो ही अ मट नशान ँ म। द ा भारती थम वष

󰏎बहार 󰏈ँ म󰎺 बहार ं म चाण सा ानी, जनक सा ा भमानी मांझी सा ज़ ी, बोधगया म स आयभट सा ग णत , राजे साद सा राजनी त अशोक अ ंभ क शेर क दहाड़ ं म, अ डग अ वचल बहार ं म। म थला क मठास ं म, वैशाली का इ तहास सात शहीद का र , लोकनायक-सा देश भ गु गो वद-सा बलवान, गया सा मो दान अपना वजूद लए बरकार ं म, अ डग अ वचल बहार ं म। मगध सा सा ा , हद के सर का ताज पटना-सा ार, भोजपुरी सा अवारा श ा के व म शला, कोशी सा वनाशलीला गणतं का थम हार ँ म अ डग अ वचल बहार ं म।

छठ सा धा मक, व ाप त सा मा मक दनकर सा क व, बु क पावन छ व मधुबनी-सी च कारी, दशरथ का हथौड़ा भारी नालंदा-सा न हत, शां त ूप सा जी वत चेतक-सी र ार ँ म अ डग अ वचल बहार ं म

󰎔ी हाँ म ी ँ, बार बार टू टती ँ हर बार जुड़ती ँ, बार बार गरती ँ, हर बार संभलती ँ, हाँ, म ी ँ।

अमृता कुमारी थम वष

जीवन के डगर पर, यायावरी सफ़र पर, कभी न कती ँ और न कभी थकती ँ, हाँ, म ी ँ।

फूल दे󰏍ह, छमा दे󰏍ह

कभी आँख म नमी, कभी लब पे मु ान, कभी डोर सी उलझती, कभी भोर सी सँवरती ँ, हाँ, म ी ँ।

पहाड़ (उ राखंड) म वसंत के आगमन पर फुलदेही मनाने क पर रा है । यह ौहार गढ़वाल और कुमाऊं के आ धकांश े म धूमधाम से मनाया जाता ह। यह ौहार ब ो का अ त य होता है । ऐ मेरी इ ज़ा, मै भी जानु घौर, म भी खेलुनु चानदु फुलदेही कु ौहार। रं गीली ली ार फर होली हमारा, तवेरी हमारी नया रं गु मा सजी होली। नौना-नौनी घुमणा ाला गौ का बाटा मा, अर गीत लगणा ाला फूलदेही ममा-दे ह। भुडा पकोडा बणा न े ली पल ला क वा दादी, वक भी ारी मा माजी आज गीत लगणा ाला। एक हमरी ही देली हवेली माजीै,जो सयी हवे ल, खुदेणी होळी हमरी याद मा, अर वा भी गीत गा ण हो ळ। गतांग भी चुप हवे ग न, ढक हमरी ा र दे खक । जाण मल भी फुला रय दगड माजी, स दा - स दा फूल ाणा खन। क ख बसर नी जवा हम अपर यूं ौहार, जाण मल भी ऐ इ ा अपरा घार। ऋ षता रावत तीय वष

कभी ेयसी बनकर, कभी चाँद सी सजकर, कभी हमसफ़र बनकर, कसी के दल म रहती ँ, हाँ, म ी ँ। अपने ब का अ ँ, र क पहली पाठशाला ज़ गी क साज़ भी म, गीत क आवाज़ भी म ँ, हाँ म ी ँ। पता को जस पे नाज़ है , मां को जस पर अ भमान, ऐसी शि सयत मेरी है , म ख़ुद अपनी पहचान ँ। हाँ, म ी ँ। सागर क गहराई म, आसमां क ऊँचाई म ज़दगी के हर मोड़ पर, मले वो नशान ँ हाँ, म ी ँ। वचला पा ेय थम वष

वा षक रपोट "मन के हारे हार ह󰎺 ,मन के जीते जीत" - जय और पराजय केवल मनु󰎉 के मन के भाव ह󰎺 । इस स󰇴 क󰎫 शु󰏅आत ऐसी ही कुछ 󰏎वषम प󰏌र󰏚󰎖󰏏तय󰎽 के साथ 󰏇ई जहाँ एक 󰏑श󰆶क न अपने छा󰇴 से, छा󰇴 न -󰏑श󰆶क से, न जू󰏑नयर-सी󰏑नयर से और न सी󰏑नयरजू󰏑नयर से 󰏑मल सका। केवल आभासी दु󰏑नया से एक दूसरे का 󰏑मलना ही सब महसूस कर पाए। 󰏎फर भी 󰏎कसी ने हार न मानी और आगे बढ़ते रह󰎷 । इसी वचु󰇢अल मा󰋞म से हमारे 󰏎वभाग 󰋚ारा 󰇹󰋄ेक वष󰇢 क󰎫 तरह ही 󰏎वभागीय ग󰏏त󰏎व󰏏धय󰎽 को सुचा󰏆 󰏆प से संचा󰏐लत 󰏎कया गया। "󰏎व󰍷 󰏍ह󰎭दी 󰏍दवस" - 10 जनवरी 2021 को "󰏎व󰍷 󰏍ह󰎭दी 󰏍दवस" के उपल󰉏 म󰎷 󰏍ह󰎭दी भाषा के मह󰋇 तथा 󰏍ह󰎭दी के 󰏎व󰏎वध 󰏎वषय को दशा󰇢ते 󰏇ए 󰏎वभाग म󰎷 पीपीटी 󰋚ारा छा󰇴ाओं क󰎫 󰇹󰎒ु󰏏त। "ह󰎺 󰏌डग ओवर सेरेमनी" - 󰏍ह󰎭दी सा󰏍ह󰋄 सभा के परामश󰇢दाता 󰋚ारा '18 जनवरी 2021' को 󰏎कया गया। इस काय󰇢󰇥म का आयोजन ऑनलाइन मा󰋞म 󰋚ारा 󰏎कया गया 󰏑जसम󰎷 पूव󰇢वत󰎲 छा󰇴 संघ (2019-20) ने नव󰏑नवा󰇢󰏐चत छा󰇴 संघ (2020-21) को 󰏎वभाग का काय󰇢भार स󰏀पा। नवागंतुक समारोह" - कॉले ज क󰎫 दु󰏑नया 󰇹󰋄ेक छा󰇴 के जीवन का सबसे मह󰋇पूण󰇢 󰏍ह󰎣ा होता है और उसी रंगीन दु󰏑नया का 󰏍ह󰎣ा बनाते 󰏇ए '21 जनवरी 2021' को नवागंतुक समारोह का आयोजन 󰏇आ। 󰏑जसम󰎷 नवागंतुक ने अपने 󰏎व󰏎वध रचना󰋂क, कला󰋂क गुण󰎽 से सभी को 󰇹भा󰏎वत 󰏎कया तथा 󰇹ाचाया󰇢 के आशीव󰇢चन ने छा󰇴ाओं का मनोबल बढ़ाया। "कोर टीम" - 󰏎वभागीय ग󰏏त󰏎व󰏏धय󰎽 का संचालन करते 󰏇ए 'कोर टीम' का संगठन 󰏎कया गया। "अंतः महा󰏎व󰋙ालय नवागंतुक 󰇹󰏏तयो󰏐गता" - हर एक छा󰇴 के अंदर एक अ󰋗ुत 󰇹󰏏तभा होती है और उ󰌅󰎱 󰇹󰏏तभाओं को देखते 󰏇ए '5 फरवरी 2021' को 󰏎व󰏑भ󰋴 󰇹󰏏तयो󰏐गताओं के साथ इसका आयोजन 󰏎कया गया। "वसंत पंचमी" - वसंत पंचमी के उपल󰉏 म󰎷 '16 फरवरी 2021' को मां सर󰎢ती क󰎫 वंदना के साथ 󰏎वभाग क󰎫 छा󰇴ाओं 󰋚ारा कुछ रचनाएं 󰇹󰎒ुत क󰎫 गई। "ले खक से मुलाकात" - '18 फरवरी 2021' को 󰏎वभाग 󰋚ारा 'ले खक से मुलाकात' काय󰇢󰇥म का सुचा󰏆 󰏆प से आयोजन 󰏎कया गया 󰏑जसम󰎷 डॉ स󰋄󰏎󰇹य पांडेय सर (󰍵ामलाल महा󰏎व󰋙ालय) ने "लोक सा󰏍ह󰋄 तथा लोकना󰊝 : अंतस󰎬बंध के 󰏎व󰏎वध आयाम" 󰏎वषय पर प󰏌रचचा󰇢 करते 󰏇ए सा󰏍ह󰋄 म󰎷 लोक जीवन का एक अलग प󰏌र󰇹े󰉏 बताया। "अंतरा󰇢󰍽ीय मातृभाषा 󰏍दवस" - भाषा मनु󰎉 के जीवन म󰎷, उसक󰎫 󰏍दनचया󰇢 म󰎷 एक मह󰋇पूण󰇢 󰏎करदार 󰏑नभाती है और इसी मह󰊸ा को दशा󰇢ते 󰏇ए '21 फरवरी 2021' को "अंतरा󰇢󰍽ीय मातृभाषा 󰏍दवस" के उपल󰉏 म󰎷 󰏎वभाग क󰎫 छा󰇴ाओं ने अपनी मातृभाषा म󰎷 क󰏎वता, ले ख आ󰏍द क󰎫 󰇹󰎒ु󰏏त दी। "संत र󰏎वदास जयंती" - '27 फरवरी 2021' को "संत र󰏎वदास जयंती" के उपल󰉏 म󰎷 󰏎वभाग क󰎫 󰇹थम वष󰎲य छा󰇴ाओं ने उनके जीवन, सा󰏍ह󰋄, उनक󰎫 व󰏌र󰍿ता और 󰈁े󰍿ता के बारे म󰎷 󰇹󰎒ु󰏏त दी। "अंतरा󰇢󰍽ीय म󰏍हला 󰏍दवस" - नारी संसार क󰎫 एक अनूठी रचना है 󰏑जसका कोई मेल नह󰎱 है । '8 माच󰇢 2021' को "अंतरा󰇢󰍽ीय म󰏍हला 󰏍दवस" मनाते 󰏇ए 󰏎वभाग क󰎫 छा󰇴ाओं ने 'म󰏍हला 󰆷ानपीठ पुर󰎌ार 󰏎वजेताओं' के बारे म󰎷 ई-पो󰎑र 󰋚ारा सं󰏑󰆶󰌈 󰏆प म󰎷 सभी के सामने 󰇹󰎒ुत 󰏎कया। "मूवी 󰎍󰎫󰏑न󰎭ग" - '12 माच󰇢 2021' को 󰏎वभाग 󰋚ारा "चुपचाप(󰏎फ󰍠 फेयर अवाड󰇢 󰏎वजेता)" मूवी क󰎫 󰎍󰎫󰏑न󰎭ग कराई गई 󰏑जसके अंत म󰎷 एसो󰏑सएशन इंचाज󰇢 डॉ दश󰇢ना धवल मैम ने मूवी के बारे म󰎷 अपने 󰏎वचार 󰍩󰈸 करते 󰏇ए कहा 󰏎क जहाँ एक तरफ़ नारी को देवी क󰎫 तरह पूजा जाता है वह󰎱 दूसरी ओर नारी क󰎫 अवहे लना करते 󰏇ए समाज 󰏎ब󰍍ुल भी नही कतराता और इसी के साथ उ󰌅󰎽ने काय󰇢󰇥म का समापन 󰏎कया। "अंतरा󰇢󰍽ीय 󰇹स󰋴ता 󰏍दवस" - '20 माच󰇢 2021' यह 󰏍दवस दु󰏑नया भर के लोग󰎽 म󰎷 खुशी के मह󰋇 के 󰇹󰏏त जाग󰏆कता बढ़ाने के 󰏐लए मनाया जाता है और इसी के साथ छा󰇴ाओं ने 󰇹󰏑स󰋓 क󰏎वय󰎽 क󰎫 हा󰎠 क󰏎वताएं 󰇹󰎒ुत क󰎫। "󰏎व󰍷 क󰏎वता 󰏍दवस" - '21 माच󰇢 2021' को "󰏎व󰍷 क󰏎वता 󰏍दवस" के अवसर पर 󰏍ह󰎭दी सा󰏍ह󰋄 सभा क󰎫 ओर से एक अनौपचा󰏌रक "ओपन माइक" का आयोजन 󰏎कया गया। 󰏑जसम󰎷 कॉले ज के 󰏎व󰏑भ󰋴 󰏎वभाग󰎽 क󰎫 छा󰇴ाओं ने अपने-अपने 󰏎वचार 󰍩󰈸 󰏎कये और 󰎢र󰏐चत क󰏎वताएं 󰇹󰎒ुत क󰎫।

"शहीद 󰏍दवस" - '23 माच󰇢 2021' को शहीद󰎽 को नमन करते 󰏇ए 󰏎वभाग क󰎫 छा󰇴ाओं ने 󰎢र󰏐चत क󰏎वता एवं 󰏎फ़󰍠 समी󰆶ा 󰇹󰎒ुत क󰎫।

"होली" - '29 माच󰇢 2021' को रंग󰎽 का 󰋄ोहार और ई󰎉ा󰇢 - 󰋚े ष को बेरंग करने वाला 󰋄ौहार 'होली' के शुभकामनाओं के साथ 󰏎वभाग क󰎫 छा󰇴ाओं ने अपने रंगीन रचना󰋂कता से एक नई ऊजा󰇢 को संचा󰏌रत 󰏎कया।

"रीच" स󰏑म󰏏त के साथ संयोजन - महा󰏎व󰋙ालय के "रीच स󰏑म󰏏त" के सह-संयोजन म󰎷 󰏎वभाग ने "󰏍ह󰎭दी 󰏑सनेमा म󰎷

󰏎वकलांगता का 󰇹दश󰇢न" जैसे 󰏎वषय के ज󰏌रये 󰏎वकलांगता पर आधा󰏌रत 󰏎व󰏑भ󰋴 󰏎फ󰍠󰎽 के बारे म󰎷 ई-पो󰎑र 󰋚ारा सं󰏐छ󰌈 󰏆प से बताया।

"वागथ󰇢 2021" (वा󰏏ष󰎮को󰋈व) - पूरे 󰏎वभाग म󰎷 छा󰇴ाओं को सबसे 󰊑ादा उस काय󰇢󰇥म का इंतजार रहता है 󰏑जसम󰎷 वे अपने सारे यादगार पल󰎽 को अपने अंदर संजो ले ना चाहती ह󰎺 । "वागथ󰇢" वा󰏏ष󰎮को󰋈व का आयोजन इस बार '8-9 अ󰇹ैल 2021' को मनाया गया।

वत󰇢मान क󰎫 इन तमाम प󰏌र󰏚󰎖󰏏तय󰎽 म󰎷 भी ऑनलाइन पटल पर हमेशा क󰎫 भां󰏏त वागथ󰇢 को दो 󰏍दवस मनाया गया 󰏑जसम󰎷

󰇹थम 󰏍दवस उ󰋑ाटन समारोह 󰏇आ। सर󰎢ती वंदना के साथ काय󰇢󰇥म का आरंभ 󰏇आ 󰏑जसम󰎷 मु󰉝 अ󰏏त󰏐थ एवं व󰈸ा 󰇹ोफेसर 󰍵ौराज 󰏑स󰎭ह 'बेचैन, अ󰋞󰆶, 󰏍ह󰎭दी 󰏎वभाग (󰏍द󰍢ी

󰏎व󰍷󰏎व󰋙ालय) ने "󰏍ह󰎭दी सा󰏍ह󰋄 क󰎫 समसामा󰏐यक

रचनाशीलता : द󰏐लत सा󰏍ह󰋄 के संदभ󰇢 म󰎷" 󰏎वषय पर अपना 󰏎व󰎒ृत 󰍩ा󰉝ान 󰏍दया। त󰊾󰍯ात 󰏎वषय संबं󰏏धत 󰇹󰍳ो󰊸र-स󰇴 रखा गया 󰏑जसम󰎷 󰏎वभाग क󰎫 छा󰇴ाओं ने अपने 󰇹󰍳 पूछे । अंततः ध󰋿वाद 󰆷ापन के साथ 󰇹थम 󰏍दवस के काय󰇢󰇥म का समापन 󰏎कया गया। 󰏍󰋚तीय 󰏍दवस के काय󰇢󰇥म म󰎷 󰇹󰋄ेक वष󰇢 क󰎫 भां󰏏त कुछ 󰇹󰏏तयो󰏐गताएं आयो󰏑जत क󰎫 गई। जैसे शोध

आले ख ले खन, बाल/लघु कथा ले खन 󰇹󰏏तयो󰏐गता, 󰎢र󰏐चत क󰏎वता पाठ, सा󰏍ह󰏗󰋄क गीत 󰇹󰏏तयो󰏐गता। इसी के साथ कुछ ऑनलाइन 󰇹󰏏तयो󰏐गताएं आयो󰏑जत क󰎫 गई जैसे 󰎡ोगन ले खन तथा शीष󰇢क दो 󰇹󰏏तयो󰏐गता। इसम󰎷 󰏎वभाग के साथ -साथ 󰏎व󰍷󰏎व󰋙ालय के 󰏎व󰏑भ󰋴 कॉले ज के छा󰇴-छा󰇴ाओं ने बढ़-चढ़ कर 󰏍ह󰎣ा 󰏐लया। अंततः 󰏎वभागीय ग󰏏त󰏎व󰏏धय󰎽 को मूवी 󰎍󰎫󰏑न󰎭ग 󰋚ारा दशा󰇢या गया।

"󰇹कृ󰏏त स󰏑म󰏏त के साथ संयोजन" - '22 अ󰇹ैल 2021' को 󰏎व󰍷 पृ󰋎ी 󰏍दवस पर सह-संयोजन म󰎷 '󰇹कृ󰏏त क󰎫 भाषा' 󰏎वषय पर 󰏎वभाग क󰎫 छा󰇴ाओं ने 󰎢र󰏐चत क󰏎वता एवं आले ख 󰏐लखे।

नइ पहल 1. म󰎷टर-म󰎷टी :- आभासी दु󰏑नया मे 󰏎वभाग के सभी छा󰇴ाओं को जोड़े रखने के 󰏐लए म󰎷टर-म󰎷टी 󰏑स󰎑म बनाया गया जहाँ तृतीय वष󰇢 क󰎫 छा󰇴ाएं 󰇹थम एवं 󰏍󰋚तीय वष󰇢 क󰎫 छा󰇴ाओं का हर 󰎒र पर सहायता करने का 󰇹यास 󰏎कया। 2. अनौपचा󰏌रक सेशन :- छा󰇴ाओं के सम󰎠ाओं और सुझाव को सुनने तथा 󰏎वभाग म󰎷 एक संबंध 󰎖ा󰏎पत करने के 󰏐लए अनौपचा󰏌रक सेशन का आयोजन 󰏎कया गया। 3. मा󰏑सक फ󰎫डबैक/सुझाव फॉम󰇢 :- छा󰇴ाओं को 󰏎कसी भी 󰇹कार क󰎫 सम󰎠ा या सुझाव सुनने के 󰏐लए हर महीने फ󰎫डबैक फॉम󰇢 भी 󰏑नकाला गया। 4. मा󰏑सक प󰏏󰇴का "अंकुर" :- इस स󰇴 से मा󰏑सक ई-प󰏏󰇴का 'अंकुर' का भी 󰇹काशन शु󰏆 󰏎कया गया। 5. रा󰍽ीय/अंतररा󰍽ीय 󰏍दवस को मनाना :- 󰏎व󰏑भ󰋴 󰏍दवस को मनाने के 󰏐लए 󰏎वभाग क󰎫 छा󰇴ाओं 󰋚ारा वी󰏌डयो, ऑ󰏌डयो, 󰎢र󰏐चत ले ख, क󰏎वता सोशल मी󰏌डया पर 󰏑नरंतर साझा 󰏎कया गया 󰏑जससे इस भयावह समय म󰎷 भी रचना󰋂कता बरकरार रहे । 6. सा󰏍ह󰋄कार󰎽 के बारे म󰎷 जानकारी :- 󰏎वभागीय सोशल मी󰏌डया पेज पर 󰏎व󰏑भ󰋴 सा󰏍ह󰋄कार󰎽 के ज󰋽/पु󰊯󰏏त󰏐थ पर उनके बारे म󰎷 󰏎वभाग क󰎫 छा󰇴ाओं 󰋚ारा ई-पो󰎑र के मा󰋞म से उनका 󰏍ह󰎭दी सा󰏍ह󰋄 म󰎷 योगदान तथा उनक󰎫 󰇹󰏑स󰋓 पं󰏐󰈸य󰎽 को साझा 󰏎कया गया। 7. 󰏎व󰏑भ󰋴 󰋄ोहार󰎽 पर छा󰇴ाओं 󰋚ारा 󰎢र󰏐चत क󰏎वता/आले ख, 󰇹󰎒ु󰏏तय󰎽 को साझा 󰏎कया गया।

हंद सा ह

सभा

2020-2021

󰏑श󰆶क सलाहकार

डॉ. दशना धवल

डॉ. योगेश र तोगी

छा󰇴 संघ



आ था दीपाली (तृतीय वष)

स चव

ऋतुजा िसंह ( तीय वष)

कोषा

आकां ा भ ( तीय वष)

ले डी 󰈁ी राम कॉले ज फ़ॉर 󰏎वमन लाजपत नगर, नई द ी-110024 दूरभाष - 011-26434459 वेबसाइट - https://lsr.edu.in/

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